मुंबई : पिछले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपा की हार में मुख्य भूमिका वंचित बहुजन आघाडी ( कांग्रेस-राकांपा गठबंधन को सीधे तौर पर 12 सीटों पर वीबीए की वजह से नुकसान हुआ था। लेकिन इस लोकसभा चुनाव में आंबेडकर का सिक्का नहीं चला। वीबीए की वजह से महाविकास आघाडी को सिर्फ चार सीटों पर ही झटका लगा है। इसके अलावा पिछले चुनाव की तुलना में इस चुनाव में वीबीए को 27 लाख कम वोट मिले हैं। आंकड़ों से साफ होता है कि राज्य की जनता ने इस चुनाव में वंचित बहुजन आघाडी को नकार दिया है।
राज्य की जिन चार सीटों पर महाविकास आघाडी के उम्मीदवारों को हार मिली है, उनमें अकोला, बुलढाणा, हातकणंगले और उत्तर-पश्चिम मुंबई की सीट शामिल हैं। आंकड़े बताते हैं कि अकोला से आंबेडकर खुद चुनाव मैदान में थे और यहां पर कांग्रेस के अलावा भाजपा के उम्मीदवार के साथ त्रिकोणीय मुकाबला था। अकोला में आंबेडकर को 2 लाख 76 हजार 747 वोट मिले, जबकि कांग्रेस की उम्मीदवार अभय पाटील महज 40 हजार 626 वोटों से चुनाव हार गए। अगर आंबेडकर महाआघाडी के उम्मीदवार होते तो उनकी जीत होती या फिर आंबेडकर ने आघाडी के उम्मीदवार का समर्थन किया होता तो फिर कांग्रेस के उम्मीदवार को जीत मिल जाती। बुलढाणा में भी उद्धव गुट के नरेंद्र खेडेकर महज 29 हजार 479 वोटों से चुनाव हार गए। जबकि वहां आंबेडकर के उम्मीदवार वसंतराव मगर को 98 हजार से ज्यादा वोट मिले। अगर यहां से वंचित का उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं होता तो फिर उद्धव गुट के उम्मीदवार की जीत तय थी। ऐसा ही हातकणंगले में भी देखने को मिला। यहां से उद्धव के उम्मीदवार सत्यजित पाटील सिर्फ 13 हजार 426 वोटों से चुनाव हार गए थे। जबकि यहां से वंचित के उम्मीदवार को 32 हजार 696 वोट मिले थे। मुंबई की उत्तर-पश्चिम सीट से उद्धव गुट के उम्मीदवार अमोल कीर्तिकर महज 48 वोटों से चुनाव हार गए थे। जबकि इसी सीट से वंचित के उम्मीदवार परमेश्वर रणछोड़ को 10 हजार से ज्यादा वोट मिले। अगर यहां भी वंचित ने महाविकास आघाडी को समर्थन दिया होता तो फिर तस्वीर कुछ और देखने को मिलती।