विकास या छलावा! उद्योग और सड़क निगल रहे खेती की जमीन

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बिलासपुर. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़े बोल रहे है कि देश के उद्योग, खदान और बड़ी-बड़ी सड़क परियोजनाएं कृषि योग्य भूमि को लगातार निगलती जा रही हैं। आंकड़ों के विश्लेषण से लगता है जैसे खेत देश के विकास में बड़ी बाधा है! खासकर ऐसे खेत जो कृषि योग्य भूमि हैं और बाकायदा जिन पर खेती होती है लेकिन विकास की दौड़ इन्हें निगल रही है।

आंकड़ों पर गौर करें तो 2019 से 2021 में ही छत्तीसगढ़ में 28 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि कम हुई है। ऐसी ही स्थिति राजस्थान की भी है, जहां इसी अवधि में करीब 11 हजार हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि कम हुई है। वहीं, इसी अवधि में छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में 16 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि बढ़ी है।

किसान नीति को ही भूले

परियोजनाओं के लिए ली जाने वाली या लगने वाली जमीन के संबंध में नियमों को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इनका ध्यान नहीं रखा जा रहा। राष्ट्रीय किसान नीति 2007 में कहा गया है कि राज्य औद्योगिक एवं निर्माण संबंधी गतिविधियों के लिए कम जैविक क्षमता वाली भूमि जैसे बंजर, क्षारीयता, अम्लीयता इत्यादि से प्रभावित भूमियों को चिह्नित करें

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