एक तरफ तो सरकारें जनता से ईमानदारी से टैक्स भरने को कहती हैं और इसी के आधार पर विकास की बात करती हैं. फिर वहीं, जब हर साल बारिश आती है जो टैक्स के बदले विकास के दावों पर पानी ही नहीं फेरती बल्कि नवसारी में हो रहे सरकारी दावों को डुबा देती है.
तेज बारिश में धुल जाता है विकास
शहर में हर साल कुछ घंटे की तेज बारिश के बाद विकास धुल जाता है और अव्यवस्थाओं की असली तस्वीर जनता को मुंह चिढ़ाती है. जनता टैक्स भरती है, लेकिन उसके बदले हर साल बारिश में कहीं सड़क बह जाती है. कहीं सब वे डूबने लगता है. कहीं रेल की पटरी के नीचे से जमीन खिसक जाती है और कहीं नाले-नाली-रोड के बीच फर्क खत्म हो जाता है. अब नवसारी के एरु रोड स्थित महाकाल कॉम्प्लेक्स के पास से गुजरने वाला ब्रिज को ही ले लीजिये। ये ब्रिज मुंबई हाईवे को जोड़ता है, एक तारा मंदिर गांव को जोड़ता है और साथ ही स्मृति गेट को जोड़ता है। ब्रिज का निर्माण तो बढ़िया किया गया है लेकिन यहाँ पानी का जमावड़ा हो रहा है। इसकी वजह से आवाजाही की दिक्कत हो रही है। ब्रिज के पास से गुजरने वाली सर्विस रोड के ठीक लगकर हाइटेंशन पावर का खंभा आप वीडियो में देख सकते हैं। ठीक उसके नीचे पानी का जमावड़ा होने के कारण किसी भी इंसान की मृत्यु का कारण हो सकता है या फिर फिर किसी बड़े हादसे को न्यौता दे सकता है। बिजली विभाग को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए। ये बिजली का खंभा महाकाल कॉम्प्लेक्स के पास ही है। स्थानीय लोगों की ये मांग है कि गांव के सरपंच जितनी जल्दी ये पानी निकासी की व्यवस्था कर सके तो राहत मिले। आम जनता की मांग के साथ जन कल्याण टाइम के संपादक राजेश भाई गावड़े से आसिफ भाई गैरेज वाले जो, एक गैरेज चलाते हैं महाकाल कॉम्प्लेक्स में, उन्होने अनुरोध किया है कि जन कल्याण टाइम न्यूज के माध्यम से कि जो पानी को लेकर समस्या हुई है उसका समाधान मिले। साथ ही पास में ही स्वामीनारायण इंटरनेशनल स्कूल है। वहां भी पानी भरा है। स्कूल में हजारों की तादाद में बच्चे पढ़ते हैं। ऐसे में इन छात्रों के लिए ये किसी खतरे से काम नहीं है।
इस पूरी खबर में बारिश तो मात्र जरिया है. असली जादूगर तो यहां सड़क बनाने वाले ठेकेदार और सरकारी विभाग है. जिसने पानी निकलने का ऐसा इंतजाम ही नहीं किया कि सड़क सड़क रहे औऱ नाला नाला. कुल मिलाकर ये है कि इस देश का आम नागरिक हर बार टैक्स भरेगा और उसके टैक्स का पैसा कभी बारिश से बहती सड़क के रूप में बह जाएगा तो कभी ये पैसा किसी उफनते नाले में डूब जाएगा. सवाल ये है कि क्या यही नियति है.