मुंबई: गैंगस्टर से नेता बने अरुण गवली की समय पूर्व रिहाई के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने 4 जून को पना फैसला दिया था। जिसमे अरुण की समय पूर्व रिहाई को इजाजत दी थी। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 4 जून के फैसले पर रोक लगा दी है। जिसमें मुंबई में हुई हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे गवली को समयपूर्व रिहाई नीति का लाभ देने का निर्देश दिया गया था।
किस हत्या मामले में मिला आजीवन कारावास
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और संदीप मेहता की अवकाश पीठ ने उच्च न्यायालय के निर्णय के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। जबकि महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजा ठाकरे और आदित्य ए. पांडे ने गवली को राजनीति में आने वाला एक “कठोर अपराधी” बताया। महाराष्ट्र की एक अदालत ने 2007 में मुंबई के शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की हत्या के लिए महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत गवली को दोषी ठहराया था। अगस्त 2012 में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और कुल 18 लाख रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया था। राज्य सरकार ने अपनी दलील में कहा कि गवली के खिलाफ मकोका का एक और मामला लंबित है। महाराष्ट्र ने कहा कि मामले में मुकदमा अपने अंतिम चरण में है।
किसको नहीं दी जा सकती समय पूर्व रिहाई
महत्वपूर्ण है कि इस नीति के तहत शराब तस्करों, नशीली दवाओं के अपराधियों और खतरनाक व्यक्तियों की खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (एमपीडीए), मकोका और टाडा जैसे गंभीर मामलों के आरोपियों की रिहाई पर रोक है। महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी याचिका में तर्क दिया, उच्च न्यायालय ने नीति की गलत व्याख्या की है। उसने मकोका को शामिल न किए जाने पर ध्यान केंद्रित किया और गलत तरीके से गवली की याचिका को अनुमति दे दी। राज्य सरकार ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि 2015 में जारी किए गए नए छूट दिशा-निर्देशों ने विशेष रूप से मकोका दोषियों को समय से पहले रिहाई से प्रतिबंधित कर दिया था।
गवली मकोका के तहत दोषी है
महत्वपूर्ण है कि गवली को जिस मामले में आजीवन कारावास की सजा दी गई है। उसमे उसे मकोका के तहत दोषी ठहराया गया है। ऐसे में भले ही गवली जुलाई 2018 में 65 वर्ष का हो गया हो, लेकिन 2015 की नई नीति ने उसे समय से पहले रिहाई के लिए अयोग्य बना दिया है। राज्य ने तर्क दिया, इस प्रकार, गवली 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर भी 2006 की नीति का लाभ नहीं उठा सकता है। इसके अलावा, सरकार ने तर्क दिया कि गवली की याचिका को स्वीकार करके उच्च न्यायालय ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर कदम उठाया है, क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 में स्पष्ट रूप से “उपयुक्त सरकार” को सजा को निलंबित या माफ करने की शक्ति प्रदान की गई है। कोर्ट किसी की सजा माफ़ी या सजा कम करने पर फैसला नहीं ले सकती है।