Goa: जल्द भारत आ सकते हैं ईसाइयों के सबसे बड़े धर्म गुरु

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Goa: गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा कि राज्य सरकार प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से अनुरोध करेगी कि वह नवंबर में गोवा में होने वाले सेंट फ्रांसिस जेवियर के पवित्र अवशेषों के दर्शन के लिए पोप फ्रांसिस को गोवा आने का निमंत्रण दें।
बता दें, सेंट फ्रांसिस जेवियर का पार्थिव शरीर आज भी बेसिलिका ऑफ बॉम जीसस के चर्च में रखा है। हर 10 साल में उनके पवित्र अवशेष दर्शन के लिए रखे जाते हैं। 2014 में आखिरी बार पवित्र अवशेषों को दर्शन के लिए निकाला गया था। उनके शरीर को कांच के एक ताबूत में रखा गया है।
45 दिन के कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर बैठक
गोवा में 45 दिन के कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर एक उच्च स्तरीय बैठक हुई। बैठक के बाद सावंत ने कहा, ‘हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अनुरोध करेंगे कि वह पोप फ्रांसिस को गोवा आने का निमंत्रण दें।’ उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री ने पोप से मुलाकात की थी तो उन्होंने उन्हें भारत आने का न्योता भी दिया था।
10 करोड़ के बजट का एलान
21 नवंबर से पांच जनवरी 2025 तक कार्यक्रम आयोजित होगा। सावंत ने पिछले महीने पेश बजट में प्रदर्शनी के लिए 10 करोड़ रुपये के बजट का एलान किया था।
सावंत ने कहा किराज्य सरकार पुराने गोवा के चर्च परिसर का सौंदर्यीकरण करेगी और धरोहर स्थलों के बुनियादी ढांचे को उन्नत करेगी। इसके अलावा दुनिया भर के तीर्थयात्रियों की सुविधा का ध्यान रखा जाएगा, जो गोवा आएंगे।
चीन की एक समुद्र यात्रा के दौरान हुई थी मौत
सात अप्रैल, 1506 को स्पेन में पैदा हुए सेंट फ्रांसिस जेवियर 1543 में गोवा के पुर्तगाली वाइसराय के साथ भारत आए थे। उस समय उन्होंने गोवा के लोगों के लिए काम करना शुरू कर दिया था। वह एक महान कैथोलिक मिशनरी थे, जिन्होंने एशिया के लोगों को यीशु मसीह की सुसमाचार का प्रचार किया था। तीन दिसंबर, 1552 में उनकी मृत्यु चीन की एक समुद्र यात्रा के दौरान हुई थी।
पहले गोवा में फिर फ्रांसिस जेवियर चर्च में दफनाया शव
ऐसा कहा जाता है कि जेवियर ने मृत्यु से पहले शिष्यों को उनका शव गोवा में दफनाने को कहा था। जिसके बाद फ्रांसिस जेवियर की इच्छा के मुताबिक उनका पार्थिव गोवा में दफनाया गया, लेकिन कुछ सालों बाद रोम से आए संतों के डेलिगेशन ने उनके शव को कब्र से बाहर निकालकर फ्रांसिस जेवियर चर्च में दोबारा दफनाया। अवशेषों को हर 10 साल में एक बार दर्शन के लिए निकाला जाता है।

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