“धर्म नहीं, नीयत पर सवाल है” एक सामाजिक संदेश , बॉलीवुड लेखक-निर्देशक श्री राजेश भट्ट साहब (मुंबई) की ओर से जन कल्याण टाइम न्यूज़, मुंबई के माध्यम से प्रस्तुति : धनंजय राजेश गावड़े जी

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समुद्र की लहरों की तरह यह समाज भी कभी शांत रहता है, तो कभी उफान पर आ जाता है।
इन लहरों के बीच खड़ा एक आम इंसान आज भ्रम में है—
कौन सही है? कौन गलत?
धर्म दोषी है या इंसान?

इसी सवाल के जवाब में एक गहरी आवाज़ गूंजती है—

ना गीता बुरी है,
ना कुरान बुरा है,
ना हिंदू बुरा है,
ना मुसलमान बुरा है,
ना खुदा बुरा है,
ना भगवान बुरा है…
भेजे में जो घुसा है,
वो शैतान बुरा है।

यह पंक्तियाँ सिर्फ शब्द नहीं,
बल्कि समाज के चेहरे पर रखा गया एक आईना हैं।


कहानी की शुरुआत

मुंबई की एक तंग गली में रहने वाला रफ़ीक और उसी गली में रहने वाला रमेश—
दोनों बचपन के दोस्त।
एक ही स्कूल, एक ही मैदान, एक ही सपने।

लेकिन जैसे-जैसे वे बड़े हुए,
उनके बीच दोस्ती की जगह
धीरे-धीरे पहचान का ज़हर भरता चला गया।

टीवी, सोशल मीडिया, अफ़वाहें, राजनीति—
सबने मिलकर इंसानों के दिलों में दीवारें खड़ी कर दीं।

रमेश को बताया गया—
“तू खतरे में है।”

रफ़ीक को समझाया गया—
“तुझे दबाया जा रहा है।”

और यहीं से शुरू हुआ वह खेल,
जिसमें धर्म को हथियार
और इंसान को मोहरा बना दिया गया।


सच का सामना

एक दिन उसी गली में दंगा भड़क उठा।
पत्थर चले, नारे लगे, आग लगी।

रमेश घायल पड़ा था।
भीड़ ने पहचान पूछी—
“कौन है ये?”

रफ़ीक आगे बढ़ा।
भीड़ को चीरते हुए बोला—
“ये इंसान है… और मेरा दोस्त है।”

उसने रमेश को उठाया,
खून से लथपथ शरीर को सहारा दिया
और अस्पताल तक ले गया।

उस दिन रमेश की आंखें खुलीं।
उसने देखा—
जिसे उसे दुश्मन बताया गया था,
वही उसका रक्षक बना।


असल सच्चाई

तभी यह एहसास हुआ—

धर्म कभी खराब नहीं होते,
इंसान ही खराब होते हैं।
और खराब इंसान का
कोई धर्म नहीं होता।

गीता ने कभी नफ़रत नहीं सिखाई।
कुरान ने कभी हिंसा नहीं सिखाई।
भगवान और खुदा ने कभी खून नहीं माँगा।

खून माँगता है—
घृणा से भरा हुआ दिमाग।


आज का संदेश

आज ज़रूरत है कि हम अपने बच्चों को
धर्म नहीं, इंसानियत सिखाएँ।

ज़रूरत है कि हम मंदिर-मस्जिद के आगे
दिल साफ रखें।

ज़रूरत है कि हम सवाल करें—
जो नफ़रत फैला रहा है,
वो किसके फायदे के लिए कर रहा है?


समापन संदेश

यह संदेश किसी एक धर्म के लिए नहीं,
बल्कि पूरी मानवता के लिए है।

अगर आज भी हम नहीं जागे,
तो आने वाली पीढ़ियाँ
हमें माफ़ नहीं करेंगी।

धर्म किताबों में पवित्र है,
इंसान के हाथों में नहीं।
धर्म को मत बदलो—
खुद को बदलो।


एक विनम्र अपील

इस संदेश को साझा करें,
ताकि नफ़रत नहीं,
समझदारी वायरल हो।

बॉलीवुड लेखक-निर्देशक


श्री राजेश भट्ट साहब, मुंबई

जन कल्याण टाइम न्यूज़, मुंबई के माध्यम से


प्रस्तुति : धनंजय राजेश गावड़े जी

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