उपचुनाव मैदान में 15 प्रत्याशी, पर असली मुकाबला त्रिकोणीय! मोरपाल, भाया और मीणा पर सबकी नजर

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अंता उपचुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। बीजेपी ने नया चेहरा मौरपाल सुमन उतारा, कांग्रेस ने भाया पर भरोसा जताया। नतीजे तय करेंगे कि सियासी कप्तान कौन बनेगा- राजे का प्रभाव या कांग्रेस की एकजुटता।

बारां जिले के अंता विधानसभा उपचुनाव में 15 प्रत्याशी अपनी ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन संघर्ष त्रिकोणीय है। बीजेपी से मोरपाल सुमन, कांग्रेस से प्रमोद जैन भाया और निर्दलीय नरेश मीणा में सीधी टक्कर है। एक नवंबर से यहां प्रचार परवान चढ़ेगा। लेकिन एक सवाल जो इस उपचुनाव को लेकर राजस्थान के सियासी हलकों में गूंज रहा है, वह यह कि अंता के चुनावी मैदान का कप्तान कौन होगा? कांग्रेस किसके भरोसे है और बीजेपी क्या खुद लड़ेगी या वसुंधरा के कंधे पर सवार होगी। निर्दलीय थर्ड फ्रंट किसके सहारे बढ़ेगा?

बीजेपी की फ्रंट सीट पर कौन?

बीजेपी ने अंता में इस बार नए चहरे मोरपाल सुमन पर दांव लगाया है। वहीं कांग्रेस ने यहां से दो बार चुनाव जीत चुके प्रमोद जैन भाया पर भरोसा जताया है। निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा भी पूरे दमखम के साथ मैदान में हैं। अब तक इस सीट पर मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही देखने को मिला है। परंपरागत रूप से ही 2008 के चुनाव को छोड़ दें तो यहां थर्ड फ्रंट के लिए ज्यादा जगह नहीं है।

लेकिन इस बार चुनाव अलग है। पहली बार इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है। इसलिए नतीजे आम चुनावों से अलग भी हो सकते हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आम चुनाव घोषणा पत्र, एंटी इनकम्बेंसी, सियासी मुद्दों पर प्रमुख रूप से लड़े जाते हैं। लेकिन उपचुनाव में फैक्टर अलग तरह से काम करते हैं। उपचुनाव में पार्टी से ज्यादा यह बात मायने रखती है कि लड़ने वाले प्रत्याशियों के साथ और खिलाफ कौन हैं। मोरपाल सुमन के बारे में एक बार जो बेहद जरूरी है, वह यह कि वे आरएसएस बैकग्राउंड से आते हैं। वे यहां संघ जिला कार्यवाह रहे हैं। इसलिए आरएसएस की टीम भी वहां एक्टिव हो गई है।

एआई पॉलिटिक्स संस्थापक राम सिंह सांखला का कहना है कि अंता चुनाव में फिलहाल तीनों प्रत्याशियों में कड़ी टक्कर है। यह कहना अभी स्पष्ट नहीं है कि पहले और तीसरे नंबर पर कौन रहेगा।

वसुंधरा कितनी जरूरी?

अंता की राजनीति में सत्ता पक्ष की धुरी वसुंधरा राजे बताई जा रही हैं, लेकिन क्या इस बार सक्रिय हैं, इस पर प्रश्न अब खड़ा होने लगा है? क्योंकि फील्ड में वसुंधरा राजे का दौरा अभी तक नहीं हुआ है। यह बात अलग है बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं के पास उनके फोन हर रोज आ रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी को यहां नतीजे अपने पक्ष में लाने हैं तो वसुंधरा राजे का एक्टिव होना जरूरी है। बताया जा रहा है कि राजे 8 नवंबर से प्रचार के लिए सक्रिय रूप से मैदान में नजर आ सकती हैं। फिलहाल उनके सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह यहां प्रचार करते नजर आ रहे हैं।

जानकारों का कहना है कि अगर यह बात छोड़ भी दी जाए कि बीजेपी का टिकट राजे की सहमति से दिया गया या नहीं तो भी यहां की जीत और हार वसुंधरा राजे पर प्रभाव जरूर डालेगी। विधानसभा सीट झालावाड़ लोकसभा क्षेत्र में आती है, जो वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत की संसदीय सीट है। वसुंधरा राजे भी इससे पहले सांसद रह चुकी हैं। उन्होंने 1989 में पहला चुनाव लड़ा था और 1991, 1996, 1998 और 1999 में इस लोकसभा सीट से जीत हासिल की। इसके बाद उनके पुत्र दुष्यंत लगातार 5 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं।

कांग्रेस में ‘भाया’ किसके भरोसे?

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अंता सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी है। कांग्रेस की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। पार्टी में स्थानीय नेताओं के बीच टिकट को लेकर मतभेद हैं, लेकिन राज्य नेतृत्व संगठन की एकजुटता दिखाने की कोशिश में जुटा है। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, पार्टी इस बार जातीय समीकरणों और किसान नाराजगी जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाने की योजना बना रही है।

हालांकि राजनीति में जो दिखता है कई बार सिर्फ वही सच नहीं होता। जो नहीं दिखता वह भी बहुत मायने रखता है। प्रमोद जैन भाया के यहां अक्रॉस पार्टी लाइन कई बड़े नेताओं से संबंध हैं। खुद भी प्रभावशाली वर्ग से आते हैं। इसके अलावा उनके नामांकन में कांग्रेस के तमाम नेताओं की मौजूदगी भी उनके सियासी कद की मजबूती को दर्शाने वाली है।

क्या है थर्ड फ्रंट का भूत-भविष्य?

अंता उपचुनाव में इस बार 15 प्रत्याशी मैदान में हैं। साल 2008 में बनी इस सीट पर अब तक 4 चुनाव हो चुके हैं। इस बार यहां पांचवा चुनाव है। लेकिन इस बार यहां मैदान में डटे प्रत्याशियों की तादाद पिछले चार चुनावों से कहीं ज्यादा है। साल 2023 में यहां 11 प्रत्याशी मैदान में थे इसमें थर्ड फ्रंट को कुल 3.3 प्रतिशत ही वोट मिला, जिसमें निर्दलीयों के अलावा आरएपी, आम आदमी पार्टी और बीएसपी के प्रत्याशी भी शामिल थे। वहीं, 2018 के चुनाव में यहां 7 प्रत्याशी मैदान में उतरे इनमें से 3.4 प्रतिशत वोट थर्ड फ्रंट के खाते में गए। इसी तरह 2013 में इस सीट से कुल 8 प्रत्याशी मैदान में उतरे। इनमें थर्ड फ्रंट के खाते में 3.4 प्रतिशत वोट गए। हालांकि 2008 का चुनाव यहां अपवाद रहा। सीट गठन के बाद यह पहला चुनाव था, जहां निर्दलीय प्रत्याशी मोहन लाल यहां से 18 प्रतिशत से ज्यादा वोट लेकर गए। इस चुनाव में निर्दलीय और थर्ड फ्रंट ने मिलाकर करीब 24.5 प्रतिशत वोट हासिल किए थे।

सबसे ज्यादा प्रत्याशी इसी बार मैदान में

इस बार उपचुनाव में यहां आम चुनाव से ज्यादा रौनक है। पिछले चार चुनावों के मुकाबले इस बार सबसे ज्यादा प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें मोरपाल सुमन-भाजपा, प्रमोद जैन भाया-कांग्रेस, योगेश कुमार शर्मा-राइट टू विकास पार्टी, राजपाल सिंह शेखावत-परिवर्तन पार्टी, जमील अहमद निर्दलीय, दिलदार धरमवीर, नरेश, नरेश कुमार मीणा, नौशाद, पंकज कुमार, पुखराज, सोनेल, बंशीलाल, बिलाल खान और मंजूर आलम के नाम शामिल हैं

प्रतिष्ठा का चुनाव क्यों? क्या कहते हैं विश्लेषक

अंता उपचुनाव के नतीजे राजनीतिक जोड़-भाग में कोई फर्क तो नहीं ला सकते, लेकिन फिर भी इसे प्रतिष्ठा से जोड़कर क्यों देखा जा रहा है, यह बड़ा सवाल है? दरअसल अंता के नतीजे यह बताएंगे कि जीत और हार का क्रेडिट किसके खाते में लिखा जाएगा।

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