हम तो पूछेंगे: हवा का रुख बदलने की आहट से ही बौखला गए हैं पीएम मोदी

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राजेश गावड़े, संपादक, जनकल्याण टाइम

पीएम मोदी ने कल उत्तराखंड की एक चुनावी रैली में बोला कि विपक्ष को चुन-चुन कर साफ कर दो। उसे पूरी तरह से खत्म कर दो। रामलीला मैदान में हुई विपक्ष की रैली में राहुल गांधी के भाषण का हवाला देकर उन्होंने यह बात कही। पहली बात तो किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी नेता का यह कहना ही लोकतंत्र की बुनियादी प्रस्थापनाओं के खिलाफ है। बगैर विपक्ष के क्या कोई लोकतंत्र काम कर सकता है? और उसमें भी यह बात अगर सत्ता पक्ष के शीर्ष पर बैठा हुआ कोई शख्स कह रहा है तो मामला और गंभीर हो जाता है। दरअसल इसके जरिये पीएम मोदी विपक्ष के उन आरोपों की ही पुष्टि कर रहे हैं जिसमें उसका कहना है कि मोदी तानाशाही के रास्ते पर हैं। वह विपक्षी दल और उसके नेता ही नहीं पूरे संविधान और लोकतंत्र को ही खत्म कर देना चाहते हैं।

रामलीला मैदान में हुई इंडिया गठबंधन की रैली में विपक्षी नेताओं ने यही बात कही थी। इस सिलसिले में राहुल गांधी ने मैच फिक्सिंग का उदाहरण दिया था और इसके साथ ही उन्होंने सत्ता की संविधान में बदलाव की मंशा पर चोट किया था। और साथ ही कहा था कि अगर तीसरी बार सत्ता में बीजेपी आयी तो पूरे देश में आग लग जाएगी। उनका इशारा देश में होने वाले लोकतंत्र और संविधान के खात्मे की तरफ था। रैली का नाम ही ‘लोकतंत्र बचाओ रैली’ था। और अगर संविधान नहीं रहेगा तो देश कैसे चलेगा?

भारत जैसे विशाल देश को क्या बगैर किसी संविधान के चलाया जा सकता है? लोकतंत्र नहीं होगा तो निश्चित तौर पर तानाशाही होगी। और फिर किसी तानाशाही के तहत क्या किसी विविधता भरे देश को एक रखा जा सकता है? ब्रिटिश हुकूमत के दौरान चर्चिल ने तो इसी बात की भविष्यवाणी की थी जब उसने कहा था कि अंग्रेजों के जाते ही हिंदुस्तान खंड-खंड हो जाएगा। और इसको कोई संभाल ही नहीं पाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। 

नेहरू जी की डाली गयी नींव पर तमाम सरकारों ने भारत रूपी जो बुलंद इमारत खड़ी की है स्वप्न में भी उसके टूटने की कोई बात नहीं सोच सकता था। लेकिन पिछले 10 सालों में जिस तरह से सरकार चलायी गयी और पूरे देश में नफरत और घृणा का माहौल बनाया गया। तमाम क्षेत्रों और उसमें रहने वाले लोगों के सवालों को दरकिनार किया गया और धीरे-धीरे संस्थाओं को या तो अपने कब्जे में ले लिया गया या फिर उन्हें खत्म करने और मार डालने की कोशिश की गयी। उन्हीं वजहों से इस तरह की आशंकाओं को बल मिलने लगा। रामलीला मैदान में राहुल गांधी इन्हीं आशंकाओं की तरफ इशारा कर रहे थे।

मणिपुर का अकेला उदाहरण इसके लिए काफी है। लद्दाख में चलने वाला आंदोलन और वांगचुक का अनशन उसकी एक दूसरी तस्वीर है। और जिस तरह से दक्षिण को पीएम मोदी उकसा रहे हैं और डिलिमिटेशन के जरिये उसके अधिकारों को छीनने की योजना बनायी जा रही है उससे अगर आने वाले दिनों में पूरा दक्षिण मणिपुर के रास्ते पर बढ़ जाए तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए। लेकिन पीएम मोदी को इन चीजों से कुछ लेना देना नहीं है। उन्हें किसी भी कीमत पर सत्ता चाहिए। 

दरअसल पीएम मोदी का यह भाषण उनकी बौखलाहट का नतीजा है। उनके पास अब अपना कोई एजेंडा नहीं बचा है जिस पर वह चुनाव को केंद्रित कर सकें और जनता को प्रभावित करके उससे वोट हासिल कर सकें। अपने दस सालों के कार्यकाल का वह नाम तक नहीं लेना चाहते हैं। महंगाई हो या कि बेरोजगारी या फिर शिक्षा तथा स्वास्थ्य तमाम मोर्चों पर मोदी सरकार ने नाकामी के नये-नये झंडे गाड़ रखे हैं। इसके पहले उन्होंने मोदी गारंटी के जरिये लोगों को ज़रूर झांसे में लेने की कोशिश की। लेकिन पिछले चुनावों के वादों का स्वाद चख चुकी जनता उन पर कतई भरोसा नहीं करने जा रही है। जिसका नतीजा यह रहा कि पूरा नारा टांय-टांय फिस्स कर गया। ऐसे में कोई न कोई गैरज़रूरी मुद्दा उठा कर वह लोगों का उनके बुनियादी मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहते हैं।

इस कड़ी में वह कभी राहुल गांधी द्वारा मुंबई में दिए गए भाषण से शक्ति को उठा लेंगे और उसको गलत संदर्भ में पेश करते हुए देश में बवाल काटने की कोशिश करेंगे या अब रामलीला मैदान के उनके भाषण को गलत संदर्भ में पेश कर विपक्ष के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके दो दिन पहले उन्होंने श्रीलंका से जुड़े कच्चाथीवु के मामले को उठाकर देश में एक भावनात्मक ज्वार पैदा करने की कोशिश की थी। लेकिन उसका भी असर बहुत दूर तक जाता नहीं दिख रहा है। वैसे तो विदेशी मामलों को घरेलू राजनीति में उठाया ही नहीं जाना चाहिए। और ऐसे मामलों को तो कतई नहीं जो इतिहास के एक दौर में हल किये जा चुके हैं।

इसके जरिये न केवल आप पड़ोसी देशों के साथ अपने रिश्ते खराब कर रहे हैं बल्कि तमाम दुश्मन शक्तियों को अपने खिलाफ साजिश रचने का भी मौका दे रहे हैं। इस एक प्रकरण के उठाने से श्रीलंका के साथ-साथ बांग्लादेश से भी रिश्ते प्रभावित होने शुरू हो गए। क्योंकि अगर आप श्रीलंका का मसला उठाएंगे तो विपक्ष को मजबूरन आपके द्वारा बांग्लादेश को दिए जाने वाला हजारों वर्ग किमी भारतीय जमीन का मुद्दा उठाना पड़ जाएगा। लेकिन ये बातें आखिरी तौर पर देश के हितों के खिलाफ जाएंगी। लेकिन मोदी के लिए देश से बड़ी कुर्सी है।

दरअसल देश के भीतर चुनावी माहौल बीजेपी विरोधी बनता जा रहा है। जगह-जगह से इनके खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। महंगाई, बेरोजगारी, किसानों के सवाल और शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य के मुद्दे चुनाव के एजेंडे में आते जा रहे हैं। और अलग-अलग रूपों में जनता इसको जाहिर कर रही है। राजस्थान में अभी तक बीजेपी को वोट देने वाले जाट कह रहे हैं कि दो बार सत्ता देकर चुका दिया जाट आरक्षण का एहसान। हम कोई उनके गुलाम थोड़े हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय समुदाय के लोगों ने बालियान को गांव में घुसने नहीं दिया। वे सभी पीएम मोदी द्वारा किए गए मुख्यमंत्री योगी के अपमान से दुखी थे। और इस चुनाव में उसका बदला लेना चाहते हैं। गुजरात में केंद्रीय मंत्री रुपाला द्वारा किया गया क्षत्रियों का अपमान बड़ा मुद्दा बन गया है। और बार-बार माफी मांगने के बाद भी मामला शांत नहीं हो रहा है। जिसका नतीजा यह है कि बीजेपी ने वहां वैकल्पिक उम्मीदवार की व्यवस्था कर डाली है। 

इलेक्टोरल बांड घोटाले ने तो पार्टी और खासकर पीएम मोदी को चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। जो मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ लंबी-लंबी डींग हांकते थे। चंदा मामले के सामने आने के बाद सबको पता चल गया कि ईडी, इनकम टैक्स और सीबीआई की रेडें घोटालेबाजों को सजा देने नहीं बल्कि बीजेपी की तिजोरी भरने के कार्यक्रम का हिस्सा थीं। बावजूद इसके अभी भी मोदी जी थेथरई से बाज नहीं आ रहे हैं।

और विपक्ष के ऊपर अपनी एजेंसियों की रेडों को भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान का हिस्सा बता रहे हैं। जबकि आज इंडियन एक्सप्रेस ने दूसरे दलों से बीजेपी में गए नेताओं के भ्रष्टाचार की सूची और पार्टी में शामिल होने के एवज में उनको दी गयी राहत का पूरा ब्यौरा दे दिया है। जो इस बात को साबित करता है कि बीजेपी न केवल भ्रष्टाचारियों को खुला संरक्षण दे रही है बल्कि खुद भी नख से लेकर सिख तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। 

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