नई दिल्ली. ऊर्जा-कुशल इमारतें भारत के लिए 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने में मददगार हो सकती हैं। भवन निर्माण क्षेत्र देश के ऊर्जा संबंधित उत्सर्जन का 20% और ऊर्जा खपत के 33% के लिए जिम्मेदार है। 2030 तक भारत में इमारतों के चार गुना बढ़ने का अनुमान है। जलवायु परिवर्तन से तापमान में वृद्धि, अनियमित वर्षा जैसे कारणों से इमारतों को ठंडा रखने की जरूरत पड़ेगी। इससे 2050 तक इमारतों की ऊर्जा खपत में आठ गुना वृद्धि होगी। अब ऐसी इमारतों के निर्माण पर ध्यान देने की जरूरत है जिससे ऊर्जा उपयोग घट सके। भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। भले ही यहां प्रति व्यक्ति उत्सर्जन कम हो लेकिन यह 2000 के बाद से वैश्विक ऊर्जा मांग में 10 फीसदी से अधिक की वृद्धि के लिए जिम्मेदार है। विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक टिकाऊ निर्माण और कुशल उपयोग से ऊर्जा उपयोग और ग्रीनहाउस उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। ऊर्जा-कुशल इमारतें न केवल एनर्जी की मांग को कम करेंगी, बल्कि सेहत, सुरक्षा और जल संरक्षण जैसी आवश्यकताओं को पूरा करने में उपयोगी साबित होंगी। ऐसे निर्माण की उच्च लागत, जागरुकता का अभाव और खराब योजनाएं इसमें बाधक है।
भारत का निर्माण क्षेत्र, देश की कुल वार्षिक प्राथमिक ऊर्जा का 37 फीसदी उपभोग करता है, प्रभावी ऊर्जा-कुशल उपायों के अभाव में यह उपभोग आठ गुना अधिक बढ़ने की आशंका है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार इमारतों को अधिक कुशल बनाया जाता है तो बाहरी वायु प्रदूषण कारक जैसे जंगल की आग का धुआं या अन्य प्रदूषक तत्व आदि भी घर के अंदर कम हो जाएंगे।
पर्यावरण उपयोगी इमारतों का निर्माण इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि 2050 तक विश्व में 37% ऊर्जा की मांग इमारतों को ठंडा रखने के लिए होगी। एक-चौथाई मांग घरेलू उपकरणों को चलाने और 12% घर को गर्म करने के लिए होगी।