Natural Library in Navsari: खुले आसमान के नीचे और पेड़-पौधों के बीच बनी है यह प्राकृतिक लाइब्रेरी, 3500 से ज्यादा हैं किताबें

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नवसारी। गुजरात के नवसारी में एक नेचुरल लाइब्रेरी बड़ी चर्चा में है. यह लाइब्रेरी किसी आधुनिक सुविधा से सज्ज नहीं है बल्कि कुदरती वातावरण में बनाई गई है. आम और चीकू के पेड़ों के बीच बनी इस लाइब्रेरी का नाम मोहन वांचन कुटीर है. शहर से दूर देवधा गांव के पास यहां के कुदरती वातावरण में बेहद शांति का अनुभव होता है. बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों तक, सभी लोगो के लिए 3500 से ज्यादा किताबें इस लाइब्रेरी में रखी गई हैं.

दादा के नाम पर शुरू की लाइब्रेरी
नवसारी के एक छोटे से देवधा गांव में रहने वाले जय वशी ने अपने दादा मोहन भाई के नाम से “मोहन वांचन कुटीर” नामक लाइब्रेरी बनाई है. यहां ना कोई एसी है और ना ही कोई लाइट. कुदरती वातावरण के बीच कुछ कुटिया बनाई गई हैं. पेड़-पौधों के बीच बैठने की जगहें बनाई गई हैं. लोग यहां प्रकृति के बीच किताबों का मजा लेते हैं. मॉनसून को छोड़ कर साल के 9 महीने यह लाइब्रेरी खुली रहती है.
यहां 3500 से ज्यादा किताबें हैं. यहां लोग आते हैं और अपने पसंदीदा विषय और लेखक की किताबें चुनते हैं और फिर किसी एक जगह बैठकर किताब पढ़ने में लग जाते है. ठंडी पवन, पछियों की चहचाहट और पेड़-पौधों की खुशबू के बीच किताब पढ़ने का मजा ही कुछ और होता है. इतना ही नही अगर आपको पानी, चाय और छाछ के साथ कुछ नाश्ता करना हो तो उसकी भी यहां मुफ्त सुविधा है. जय ने बताया कि उनके दादाजी कोरोनाकाल में चल बसे. उनको किताबें पढ़ने का शौक था और उनकी इच्छा थी कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को पढ़ने में दिलचस्पी बढ़े. इसलिए जय ने अपने दादाजी का सपना पूरा किया.

तीन साल से चल रही है लाइब्रेरी
जय ने बताया कि उनके दादाजी को यह जगह बहुत प्यारी थी और वे यहां समय बिताते थे. इसलिए उन्होंने इस तरह की नेचुरल लाइब्रेरी बनाने का फैसला किया. उन्होंने इस जगह का नाम मोहन कुटीर रख दिया और यहां लोगों के लिए हजारों की संख्या में किताबें रख दीं. यह लाइब्रेरी पिछले तीन साल से चल रही है और इसे सिर्फ मॉनसून के समय बंद रखा जाता है. बाकी साल के 9 महीने शहर की भीड़भाड़ वाली जिन्दगी से दूर कुदरती वातावरण के बीच लोग यहां आकर किताबों की दुनिया में खो जाते हैं. आज के आधुनिक कैफे कल्चर के समय में इस तरह की लाइब्रेरी को लोग पसंद कर रहे हैं तो इसका मतलब है की आज भी लोगों को बाहरी दिखावे से ज्यादा कुदरती वातावरण में रहना पसंद है.

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