
राजेश लक्ष्मण गावड़े
मुख्य संपादक (जन कल्याण टाइम)
🖋️
“ज़रूरत से ज़्यादा बातचीत,
ज़रूरत से ज़्यादा लगाव,
ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीद,
और ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा…
आख़िर में इंसान को
ज़रूरत से ज़्यादा कष्ट देता है।”
🧠 सोचिए… जब कोई चीज़ “ज़रूरत से ज़्यादा” हो जाती है,
तो वो हमारी कमजोरी बन जाती है।
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- ज़रूरत से ज़्यादा बातचीत – कभी-कभी राज़ खोल देती है।
- ज़रूरत से ज़्यादा लगाव – हमें भावनाओं में कैद कर देता है।
- ज़रूरत से ज़्यादा उम्मीद – हमें बार-बार तोड़ती है।
- ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा – हमें धोखा दिलवाता है।
🌪️ और जब ये सब मिलकर टूटते हैं,
तो इंसान बिखर जाता है….
क्योंकि चोट वहाँ नहीं लगती जहाँ दिखती है,
बल्कि वहाँ लगती है जहाँ हम महसूस करते हैं।
💡 जीवन का मूल मंत्र यही है:
“हर चीज़ को उसकी मर्यादा में रखो…”
न ज़्यादा, न कम — बस उतना जितना ज़रूरी है।
🔥 कभी-कभी दूरी ही बचाती है,
और सीमाएं ही सिखाती हैं कि
कौन अपना है और कौन बस वक़्त का मुसाफिर।
🧘♂️
संतुलन रखो…
भावनाओं में भी,
रिश्तों में भी,
और भरोसे में भी।
क्योंकि जीवन कोई मेलोड्रामा नहीं,
बल्कि एक साइलेंट स्ट्रगल है,
जहाँ सबसे बड़ी जीत — खुद को समझना है।
🎯 अंत में सिर्फ इतना कहूँगा:
“ज़रूरतें निभाओ, ज़रूरत से ज़्यादा नहीं!”
क्योंकि जो लोग हमारे दिल से खेलते हैं,
वो अक्सर हमारी “ज़रूरत से ज़्यादा” की देन होते हैं।
🎬 RLG PRODUCTION – दिल से… दिल तक!
✍️ : Rajesh Laxman Gavade
🖤 अगर ये बात दिल को छू गई हो,
तो इसे किसी ऐसे इंसान तक ज़रूर पहुँचाना,
जो आज भी “ज़रूरत से ज़्यादा” में उलझा बैठा है…