

पिछले कुछ दिनों से बड़े पैमाने पर वनों की कटाई का शिकार हुआ है। 30 मार्च से 2 अप्रैल 2025 के बीच लगभग 400 एकड़ जंगल क्षेत्र को काट दिया गया। इस कार्य के लिए 50 से अधिक बुलडोजर और अन्य भारी मशीनों का इस्तेमाल किया गया, जिसके परिणामस्वरूप वहां की वनस्पति और वन्यजीवों के आवास को भारी नुकसान पहुंचा। यह कटाई कथित तौर पर एक आईटी पार्क के विकास के लिए की गई थी, जिसे तेलंगाना सरकार ने मंजूरी दी थी।
पर्यावरणीय प्रभाव
कांचा गाचीबोवली जंगल में 700 से अधिक पौधों की प्रजातियां, 237 पक्षी प्रजातियां (प्रवासी पक्षियों सहित), और कई जंगली जानवर जैसे चित्तीदार हिरण, जंगली सूअर, भारतीय स्टार कछुआ, मॉनिटर छिपकली और भारतीय रॉक पायथन पाए जाते हैं। इनमें से आठ प्रजातियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित हैं। इस क्षेत्र में 2.5 अरब साल पुरानी मशरूम रॉक जैसी अनूठी भूगर्भीय संरचनाएं भी मौजूद हैं, जो इसे पर्यावरणीय और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती हैं।
वनों की कटाई से निम्नलिखित प्रभाव देखे जा रहे हैं:
हवा की गुणवत्ता में गिरावट: यह जंगल हैदराबाद की हवा को शुद्ध करने और तापमान को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। अब प्रदूषण और गर्मी में वृद्धि की आशंका है।
जल संकट: यह क्षेत्र तीन झीलों – पीकॉक लेक, बफैलो लेक और एक अन्य झील – का हिस्सा है, जो शहर के लिए पेयजल के स्रोतों को रिचार्ज करता था। वनों के नष्ट होने से जल स्तर में कमी आ सकती है।
वन्यजीवों का विस्थापन: कई पक्षियों और जानवरों के घोंसले और आवास नष्ट हो गए हैं। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में मोर और अन्य पक्षियों की चीखें सुनाई दीं, जो उनके घरों के उजड़ने का प्रमाण हैं।
कानूनी और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस घटना ने व्यापक विरोध और कानूनी कार्रवाई को जन्म दिया है:
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: 3 अप्रैल 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया और तेलंगाना सरकार से विस्तृत हलफनामा मांगा। कोर्ट ने पूछा कि क्या पेड़ काटने के लिए वन प्राधिकरण से अनुमति ली गई थी और कटे हुए पेड़ों का क्या किया गया। कोर्ट ने आगे की कटाई पर रोक लगा दी और सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी को मौके का दौरा कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया। यह रोक 7 अप्रैल 2025 तक प्रभावी है।
तेलंगाना हाई कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से 24 घंटे पहले, हाई कोर्ट ने भी इस क्षेत्र में गतिविधियों पर रोक लगाई थी। यह याचिका संरक्षणवादियों और हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने इस जंगल को वन संरक्षण अधिनियम के तहत “जंगल” घोषित करने की मांग की थी।
छात्रों और पर्यावरणविदों का विरोध: हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों और संरक्षणवादियों ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने बुलडोजरों पर चढ़कर और नारे लगाकर सरकार और पुलिस के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया।
सरकार और राजनीतिक प्रतिक्रिया
केंद्र सरकार: पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस घटना को “दुर्भाग्यपूर्ण” करार देते हुए तेलंगाना सरकार को नोटिस जारी किया और तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी। उन्होंने कहा कि रात के अंधेरे में इस तरह की कार्रवाई समझ से परे है।
तेलंगाना सरकार: मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली सरकार ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार यह कटाई विकास परियोजनाओं के लिए जरूरी थी।
विपक्ष का हमला: भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के नेता के. तारक रामाराव (केटीआर) ने सरकार की आलोचना की और कहा कि उनकी पार्टी सत्ता में आने पर इस भूमि को ईको-पार्क में बदल देगी। उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने हैदराबाद को हरा-भरा बनाया था और 270 करोड़ पौधे लगाए थे।
जनता का रोष और सोशल मीडिया
सोशल मीडिया पर इस घटना के वीडियो और तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिसमें पक्षियों की चीखें और बुलडोजरों की आवाजें सुनाई दे रही हैं। लोगों ने इसे “हरित हत्या” करार दिया और सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग की। कई यूजर्स ने लिखा कि मानव अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति को नष्ट कर रहा है, जिसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा।
निष्कर्ष
कांचा गाचीबोवली जंगल का विनाश हैदराबाद के लिए एक बड़ा पर्यावरणीय और सामाजिक संकट बन गया है। सुप्रीम कोर्ट का अगला सुनवाई 16 अप्रैल 2025 को होने की उम्मीद है, जिसमें राज्य सरकार को जवाब देना होगा। तब तक, इस क्षेत्र में कोई भी गतिविधि प्रतिबंधित है। यह घटना विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन की जरूरत को उजागर करती है। जनता, छात्र और संरक्षणवादी इस मामले में सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, ताकि हैदराबाद अपने प्राकृतिक धरोहर को बचा सके।
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