Shiv Sena MLAs Row: शिवसेना UBT के सदस्यों की योग्यता बरकरार, फिर भी उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर सवाल

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Shiv Sena vs Shiv Sena Verdict: महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर (Rahul Narwekar) ने 54 विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया और दोनों गुटों-एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के नेतृत्व वाली शिवसेना और शिवसेना (यूबीटी) के सदस्यों को बरकरार रखा, लेकिन फैसले ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व पर सवालिया निशान खड़े कर दिए और एक नेता के रूप में उनकी स्थिति को कमजोर कर दिया अध्यक्ष ने फैसला पढ़ते हुए कहा, “पक्ष प्रमुख (पार्टी प्रमुख) पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में केवल एक पीठासीन सदस्य होता है. उसकी इच्छा पार्टी की इच्छा का पर्याय है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.”
क्या बोले राहुल नार्वेकर?
अध्यक्ष ने फैसला पढ़ते हुए आगे कहा कि पार्टी अध्यक्ष के पास किसी को भी पद से हटाने का अधिकार नहीं है, उन्होंने कहा, ‘पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे द्वारा शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे को हटाया जाना स्वीकार नहीं किया जा सकता. 9 जून, 1966 को, जब बाल ठाकरे ने शिव सेना की स्थापना की, तो सभी ने उन्हें पार्टी सुप्रीमो के रूप में संबोधित किया. पार्टी और उसकी नीतियों में उनका आदेश अंतिम था. साल 2002 में जब उद्धव को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया, तो पार्टी की बागडोर पिता के हाथ से बेटे के हाथ में आ गई.
56 विधायकों में से 40 ने बदला पाला
साल 2012 में, बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद, यह समझा गया कि पार्टी में निर्विवाद आलाकमान कोई और नहीं बल्कि उद्धव ठाकरे हैं, लेकिन जून 2022 में, जब एकनाथ शिंदे ने विद्रोह का झंडा उठाया था, जिससे पार्टी में विभाजन हो गया, तो यह शिवसेना और उद्धव ठाकरे के लिए सबसे बड़ा झटका था. 56 विधायकों में से 40 ने अपनी वफादारी बदल ली और शिंदे के नेतृत्व वाली सेना का हिस्सा बन गए. 19 में से लगभग 13 सांसद शिंदे गुट में चले गए. शिवसेना में विभाजन तब हुआ था जब उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. गौरतलब है कि साल 2014 में, उन्होंने गठबंधन सहयोगी बीजेपी के साथ सीट-बंटवारे का कड़ा समझौता करके अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था.
उनके इसी अड़ियल रुख के कारण दोनों सहयोगियों में कड़वाहट पैदा हुई और दो दशक से अधिक पुराना भगवा गठबंधन टूट गया, लेकिन चुनाव के बाद, उद्धव ठाकरे ने सरकार बनाने के लिए समझौता कर लिया, जिसका नेतृत्व मुख्यमंत्री के रूप में देवेन्द्र फड़णवीस ने किया. इसके पांच साल बाद, उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाने का असामान्य फैसला लिया. वहीं बीजेपी ने उद्धव ठाकरे पर विश्वासघात का आरोप लगाया.

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