नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में अवैध प्रवासियों की नागरिकता पर 17 अक्टूबर और लोकसभा-विधानसभा में SC-ST रिजर्वेशन पर 21 नवंबर को सुनवाई होगी।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में जस्टिस एएस बोपन्ना, एमएम सुंदरेश, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पांच जजों की संविधान बेंच इन मामलों की सुनवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट बुधवार 20 सितंबर को इन दोनों मामलों के अलावा क्रिमिनल केसों में सांसदों को सदन में वोट या भाषण देने की छूट देने से जुड़े कुल तीन मामलों पर सुनवाई करने वाली थी।
अब तीनों मामले डिटेल में जान लीजिए
असम समझौते से जुड़ा मामला
15 अगस्त 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम समझौते पर साइन किए थे। जिसमें 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक राज्य में आए अवैध प्रवासियों को वहां का नागरिक माना गया था। इन लोगों को धारा 18 के तहत खुद को देश के नागरिक के रूप में रजिस्टर्ड करना था। इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में 17 याचिकाएं दाखिल की गई थीं, जिसमें से साल 2009 में असम पब्लिक वर्क्स की ओर से दायर याचिका भी शामिल है।
संसद-विधानसभाओं में SC/ST सदस्यों की आरक्षण का मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट में संसद और राज्य की विधानसभाओं में SC/ST के लिए आरक्षण की अवधि 10 साल से बढ़ाने के मामले में याचिकाएं दाखिल की गई थीं। जिनमें आरक्षण देने वाले 79वें संविधान संशोधन अधिनियम 1999 की वैधता को चुनौती दी गई थी। 2 सितंबर 2003 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाएं पांच जजों की संविधान बेंच को ट्रांसफर कर दी थीं। संविधान के अनुच्छेद 330 में संसद और विधानसभा में SC/ST को आरक्षण देने का प्रावधान है। संविधान बेंच विचार करेगी कि क्या 79वें संवैधानिक संशोधन के तहत एससी/एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए आरक्षण की अवधि को 50 साल से बढ़ाकर 60 साल करना समानता के अधिकार का उल्लंघन है?
सांसदों को क्रिमिनल केसों के मामले में छूट का मामला
संविधान बेंच एक अन्य मामले पर भी विचार करेगी, जिसमें यह सवाल शामिल है कि क्या कोई सांसद या विधायक सदन में भाषण देने या वोट देने के लिए क्रिमिनल केस में छूट का दावा कर सकता है। साल 2019 में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामला बड़ी बेंच के पास भेज दिया था।दरअसल, झारखंड मुक्ति मोर्चा की सदस्य सीता सोरेन पर 2012 के राज्यसभा चुनाव में एक विशेष उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद CBI ने एक चार्जशीट दाखिल की थी। जिसे चुनौती देते हुए सीता सोरेन ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। उन्होंने तर्क दिया- मुझे संविधान 1950 के अनुच्छेद 194 (2) के तहत छूट मिली है, जो इस बात पर विचार करता है ‘किसी राज्य के विधानमंडल का कोई भी सदस्य विधानमंडल में कही गई किसी बात या दिए गए किसी वोट के संबंध में किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सुनवाई के दौरान पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य के फैसले पर भरोसा किया गया, जिसने संसद में वोट के संबंध में रिश्वत लेने के मामले में मुकदमा चलाने से अनुच्छेद 194(2) के तहत सांसदों को प्राप्त छूट को बरकरार रखा था। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को एक संविधान पीठ के पास भेजना उचित समझा, जो पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार कर सके।