मुद्दे की बात, संपादक राजेश गावड़े जी के साथ : शेयर बाजार में हुए खिलवाड़ का सच

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मंगलवार, 4 जून को जब 18वीं लोकसभा के लिए चुनावों के नतीजे आए, तो इंडिया गठबंधन के शानदार प्रदर्शन से यह राहत मिली कि लोकतंत्र और संविधान बच गया, लेकिन वहीं शेयर बाजार के निवेशकों के लिए यह दिन राहत की जगह आफत की खबर लेकर आया। एक्जिट पोल आने के बाद शेयर बाजार में जो उछाल देखने मिला था, वह नतीजों के आने की शुरुआत के साथ ही बुलबुले की तरह फूट गया। मंगलवार को निवेशकों के एक कारोबारी सत्र में ही 30 लाख करोड़ रुपये डूब गए। जाहिर है ये निवेशकों की जेब से निकल कर किन्हीं बड़े खिलाड़ियों की जेब में ही गए होंगे। क्योंकि लाखों करोड़ रूपए हवा में गायब नहीं हुए, एक के खाते से निकल कर दूसरे के खाते में गए। अब सवाल यही है कि वो कौन से खिलाड़ी हैं, जिन्हें शेयर बाजार में इस उछाल और गिरावट का फायदा मिला। और किस तरह इन लोगों को बाजार में होने वाली इस हलचल की पहले से ही खबर थी।

चुनावों के पहले चरण के बाद से ही शेयर बाजार मे गिरावट का सिलसिला देखा जा रहा था और तब से ही कयास लगने लगे थे कि मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल नहीं होगा। इंडिया गठबंधन के पक्ष में जनादेश जा सकता है। क्योंकि सत्ता परिवर्तन की आहट शेयर बाजार को पहले लग जाती है। खबरें थीं कि मई माह में विदेशी निवेशकों ने बड़ी मात्रा में अपने निवेश वापस ले लिए थे, इसका नुकसान भारतीय शेयर बाजार को हुआ। लेकिन फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने बयानों में शेयर बाजार को लेकर भविष्यवाणियां की। नरेन्द्र मोदी ने साफ तौर पर कहा था कि 4 जून को शेयर बाजार में उछाल आएगा, वहीं अमित शाह ने भी कहा था कि निवेशकों को स्टॉक खरीद लेने चाहिए क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि 4 जून को बाजार चढ़ेगा।

याद नहीं पड़ता कि इस देश के किसी प्रधानमंत्री या गृहमंत्री ने इससे पहले इस तरह चुनावों के बीच में और खासकर परिणाम आने वाले दिन से पहले शेयर बाजार के निवेशकों को कोई सलाह दी हो। पूर्ववर्ती मोदी सरकार के अनेक अनैतिक कामों में अब इसे भी जोड़ लेना चाहिए। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का काम सरकार चलाना, देश की व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाना है। उन्हें शेयर बाजार का खिलाड़ी नहीं बनना चाहिए था। लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें इस खेल में किसी सोची-समझी रणनीति के तहत शामिल किया गया। भाजपा के कमजोर प्रदर्शन को देखते हुए यह आशंकाएं जतलाई जा रही थीं कि शायद भाजपा फिर सत्ता में न लौट पाए। ऐसे में सरकार के संरक्षण में फल-फूल रहे उद्योगपतियों को भावी नुकसान नजर आने लगा था और शायद उन्हीं के इशारों पर शेयर बाजार का ऐसा खेल चुनाव के बीच में खेला गया, जिसमें लाखों करोड़ डूब गए और देश एक जबरदस्त आर्थिक घोटाले का शिकार हो गया।

चुनाव शुरु होने के पहले ही इलेक्टोरल बॉन्ड का घोटाला सामने आया था, जिसका पूरा सच अब तक सामने नहीं आ पाया है और दोषी अब भी मजे में हैं। पीएम केयर्स फंड में किस तरह से, कितना धन आया है, यह तो मोदी सरकार ने पता लगने ही नहीं दिया। कृषि बिल, अग्निवीर योजना, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, चीन की घुसपैठ, पुलवामा हमला, वैक्सीन से होने वाली मौतें ऐसी कई बातों का सच अभी सामने नहीं आया है कि आखिर किस नीयत से मोदी सरकार ने इन फैसलों को लिया या जो घटनाएं हुईं, उनकी हकीकत क्या है। और अब एक नया शेयर बाजार का घोटाला भी सामने आ गया है।

1 जून को एक्जिट पोल के आते ही जिस तरह शेयर बाजार चढ़ा था, तब से कांग्रेस इसे लेकर सवाल उठा रही थी और जब नतीजे आए तो अपने एक्जिट पोल में एनडीए को भारी बहुमत देने वाली एक सर्वे एजेंसी के मुखिया को कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने खरी-खरी बात कही थी कि उनके आकाओं के कारण देश के आम आदमी को इतना नुकसान हुआ है। पवन खेड़ा ने इसे सीधे देशद्रोह कहा था। वहीं अब राहुल गांधी ने भी एक प्रेस कांफ्रेंस कर शेयर बाजार के इस घोटाले पर कड़े सवाल उठाए हैं।

राहुल गांधी ने तीन महत्वपूर्ण सवाल किए हैं- पहला, प्रधानमंत्री ने देश की जनता को निवेश की सलाह क्यों दी? क्यों गृह मंत्री ने उन्हें स्टॉक खरीदने का आदेश दिया?
दूसरा, दोनों जो इंटरव्यू किए गए। ये अडानी समूह के चैनल को दिए गए। उन पर पहले ही सेबी की जांच बैठी है तो उस पर जांच होनी चाहिए।
तीसरा, मोदी जी के ये जो फेक इन्वेस्टर हैं और जो विदेशी निवेशक हैं। इनके बीच क्या रिश्ता है और अगर रिश्ता है तो इसकी जांच होनी चाहिए।

राहुल गांधी ने कहा कि हम इस पूरे मामले में संसदीय समिति से जांच की मांग करते हैं। इस पूरे मामले में निवेशकों ने करोड़ों गंवाए हैं। यह एक आपराधिक कार्य था।
राहुल गांधी ने झूठे एक्जिट पोल, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की शेयर बाजार को लेकर दी गई सलाह, भाजपा की आंतरिक सर्वे रिपोर्ट, जिसमें उसे सीटें कम आ रही हैं और फिर नतीजों के बाद शेयर बाजार के धराशायी होने की पूरी क्रोनोलॉजी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में समझाई। ठीक इसी तरह राहुल गांधी पहले भी नोटबंदी, जीएसटी, कोरोना लॉकडाउन, वैक्सीनेशन, कृषि कानून, अग्निवीर योजना, जाति जनगणना, आरक्षण को लेकर भाजपा की सोच, इन सबका खुलासा जनता के बीच करते रहे।

लेकिन भाजपा प्रायोजित मीडिया ने उन्हें एक नौसिखिया राजनेता की तरह ही दिखाया। हालांकि समय के साथ राहुल गांधी की कही सारी बातें सच साबित हुईं। अब एक बार फिर राहुल गांधी ने शेयर बाजार में हुए बड़े घोटाले पर सवाल उठाए हैं, तो देखना होगा कि मीडिया इन सवालों पर अब कितनी चर्चाएं करता है, और नयी सरकार बनने के बाद क्या इस घोटाले की जांच होती है या माननीय सर्वोच्च न्यायालय देश के लाखों निवेशकों के हितों को ध्यान में रखकर इस पर स्वत: संज्ञान लेकर किसी कार्रवाई के निर्देश देता है।

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