Editorial From Rajesh Gavade: गांधी को फिल्म से जानने वाले

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वाराणसी कहें या बनारस या फिर काशी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लोकसभा क्षेत्र जहां से वे तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। यहां 1 जून को मतदान होगा। यहीं पर है बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय। इसे बनाया था महामना पं. मदन मोहन मालवीय ने। उनकी प्रेरणा थे महात्मा गांधी। गांधी जी को पंडित जी से भी लगाव था, काशी से भी और स्वाभाविकत: बीएचयू से भी। इसलिये 5 फरवरी, 2015 को उसके स्थापना दिवस समारोह में वे विशेष रूप से उपस्थित हुए थे। दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे और अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह पर भारत का कोना-कोना देख आये थे। दरभंगा के महाराज के शरीर पर आभूषण देखकर कहा था कि अब मुझे पता चला कि देश सोने की चिड़िया से गरीब कैसे बना। अपने भाषण में उन्होंने छात्रों से पूछा था कि वे कैसा स्वराज चाहते हैं।

उसी लोकसभा क्षेत्र से देश का प्रतिनिधित्व करने वाले मोदी जी कहते हैं कि गांधी का पता दुनिया को रिचर्ड एटनबरो की फिल्म देखने के बाद पता चला। है न गज़ब, कि जो गांधी गुजरात के थे, उसके मोदी मुख्यमंत्री रहे। गांधी का नाम वे साल में पांच-सात बार ले ही लेते हैं। देश हो या विदेश, हर जगह गांधी का उल्लेख करते हैं। उन्हें अगर मलाल है कि गांधी को वैसा नहीं जाना जाता जिस प्रकार नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग को जाना जाता है। मोदी शायद यह नहीं जानते कि जिन लोगों का वे नाम लेते हैं, वे खुद को ही गांधी के अनुयायी मानते हैं। एक चैनल को साक्षात्कार देते वक्त जब वे कहते हैं कि हमने, यानी देश ने ऐसे कोई प्रयास नहीं किये कि दुनिया में लोग उन्हें जानें। दरअसल मोदी कांग्रेस की आलोचना करने के लिये यह कह रहे थे परन्तु ऐसा कहकर वे अपनी कुटिलता व अल्प ज्ञान का ही परिचय दे गये थे। वे नहीं जानते कि बहुत युवावस्था में जब वे दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद व श्रमिकों के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे, तभी से दुनिया उन्हें जान गयी थी। गोखले उन्हें भारत आमंत्रित करने वहां जाते हैं। सत्य व अहिंसा दो ऐसे सिद्धांत उन्होंने दुनिया को दिये, जिससे सारा विश्व ही उनका मुरीद हो उठा था। महान मानवतावादी रूसी लेखक लियो टॉलस्टॉय से उनका पत्र व्यवहार होता था। गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने जाते हैं तो उनसे मिलने महानतम अभिनेता चार्ली चैपलिन आते हंै, दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन उनसे मिलने के बाद कह उठते हैं कि आने वाले वर्षों की पीढ़ियां इस बात पर शायद ही यकीन करेगी कि गांधी नाम का हाड़-मांस का पुतला कभी इस धरती पर चला था।

गांधी के लिए दीवानगी कुछ यूं थी कि अंग्रेजी साहित्यकार मुल्कराज आनंद उनसे साक्षात्कार करने भारत आते हैं और बीबीसी का पत्रकार उनके साथ चलता हुआ नमक तोड़ो सत्याग्रह को कवर करता है, जिसे वह ग्रेट दांडी मार्च कहता है। 1931 में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जब गांधीजी गए तो ब्रिटिश प्रधानमंत्री से भी मिले, जिस पर फ्रेंक मॉरिस ने कहा था, ‘एक अधनंगे फकीर को ब्रिटिश प्रधानमंत्री से बातचीत के लिए सेंट जेम्स पैलेस की सीढ़ियां चढ़ने का नजारा अपने आप में अनोखा और दिव्य प्रभाव पैदा करने वाला था।’

गांधी वही अधनंगे फकीर थे जो दुनिया के सबसे ताकतवर ब्रितानी शासक की आंख में आंख डालकर कहने की हिम्मत रखते थे कि उनके शरीर पर इतने कम कपड़े इसलिये हैं क्योंकि उनके जैसे देश के लोगों के हिस्से तो आपने पहन रखे हैं। उसी इंग्लैंड में वह उन्हीं कपड़ा मिल मजदूरों की बस्ती में रूकते हैं जो भारत में छेड़े गए विदेशी वस्त्रों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के कारण बेकार हो गये थे।

भारत की आजादी के पहले और बाद में भी गांधी के मुरीद देश ही नहीं विदेशों में भी थे। आंग सान सू,कैलेनबाख, मीरा बेन, नेल्सन मंडेला से लेकर बराक ओबामा तक, कितने नाम लें और कितने छोड़ें। आज भी दुनिया भर में सबसे ज्यादा मूर्तियां व डाक टिकट गांधीजी पर हैं। यहां तक कि लंदन में वेस्टमिंस्टर परिसर में भी उनकी मूर्ति है, जबकि गांधीजी ने इन्हीं अंग्रेजों के खिलाफ लड़े थे।

30 जनवरी 1948 को जब गांधीजी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी, तो इस शोक में केवल भारत ही नहीं समूची मानवता डूब गई थी। उनकी म़त्यु पर दुनिया भर के झंडे झुक गये थे। आजाद भारत में एक परंपरा ही बन गई है कि जब भी किसी विदेशी राष्ट्र्र्राध्यक्ष का दौरा होता है तो गांधी समाधि राजघाट पर जाकर श्रद्धांजलि दी जाती है, गांधी स्मृति में पौधारोपण किया जाता है।

ये सारी बातें आम भारतीयों को पता है, दुनिया भी गांधी के बारे में काफी कुछ जानती है। लेकिन शायद दस सालों से देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन नरेन्द्र मोदी को ही इन बातों का पता नहीं था। तभी उन्होंने ऐसा बयान दिया। राहुल गांधी ने बिल्कुल सही लिखा है कि सिर्फ ‘एंटायर पॉलिटिकल साइंस’ के छात्र को ही महात्मा गांधी के बारे में जानने के लिये फिल्म देखने की ज़रूरत रही होगी।

गांधी को कौन कितना जानता है या नहीं जानता है, इस पर राय देने की जगह अगर प्रधानमंत्री इस बात पर गौर फरमाते कि 10 सालों में गांधीजी के खिलाफ देश में किस तरह घृणा का माहौल बनाया गया है, किस तरह गांधी की हत्या करने वाले गोडसे को महिमामंडित करने का खेल रचा गया है, तो बेहतर होता।

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