Lok sabha Election 2024: मणिपुर के शाब्दिक अर्थ पर गौर किया जाए तो इसे मणियों यानी आभूषणों की भूमि कहा जाता है। एक साल में यहां दो समुदायों के बीच हुई संघर्ष की घटनाओं को अलग रख दिया जाए तो मुल्क में इस सूबे की हैसियत इस नाम के अनुरूप ही रही। रिसायतकाल में भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया में सांस्कृतिक आदान प्रदान का रास्ता इसी राज्य से होकर गुजरता था।
संसार में मुक्केबाजी और वेट लिफ्टिंग में देश का परचम लहराने वाली मेरी कॉम और मीराबाई चानू इसी राज्य से निकली हैं। इन सब खूबियों के बीच प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता भी कम नहीं रही। कोलकाता एयरपोर्ट से इम्फाल की फ्लाइट में मेरे पड़ोस की सीट पर बैठी वेस्ट इम्फाल की छात्रा शर्मिला का मणिपुर को लेकर दर्द छलक ही आया।
बेंंगलुरू के एक स्टार्टअप कार्यरत शर्मिला का कहना था कि गांव में इंटरनेट सेवाएं बहाल हो गई, इसलिए अब वर्क फ्रॉम होम के लिए घर जा रही है। कहने लगी, पिछले एक साल से मणिपुर में हमारे लिए खुशी का कोई पल नहीं आया। पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। मैतई और कुकी समुदाय से संबंधित एक्सपर्ट शिक्षक अपने-अपने क्षेत्र में चले गए हैं। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। पिछले साल मई में उसके गांव में भी हमला हुआ था, किसी तरह पलंग के नीचे छुपकर परिवार के लोगों ने जान बचाई थी।
इम्फाल एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही सुरक्षाकर्मी चाकचौबंद नजर आए। मुख्य मार्ग पर असम राइफल्स और बीएसएफ के जवान तैनात थे। जिस ऑटो से मैं होटल जा रहा था, उसके चालक ने रास्ते में बताया कि हाल ही पड़ोसी जिले चुराचांदपुर में एसपी ऑफिस में हमला हुआ है। पता नहीं यहां हिंसा का दौर कब थमेगा? बाजारों में भीड़ नहीं है, व्यापार ठपसा हो गया है। लोगों के पास काम नहीं है। ऑटो चालक की सलाह थी कि बाजार जल्दी बंद हो जाता है। पूछताछ भी बढ़ जाती है इसलिए जल्दी ही होटल लौट आएं। वाकई में रात 8 बजे के बाद यहां मुख्य बाजारों में सन्नाटा पसरा नजर आया।
Lok sabha Election 2024: कामरूप से कच्छ तक, हिंसा की घटनाओं से रह-रहकर गहरे हो रहे परेशानियों के घाव,एक ही सवाल, मणिपुर में कब लौटेगा सुकून?
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