
हालाँकि, “विश्व भूख रिपोर्ट 2025” नामक कोई विशिष्ट आधिकारिक रिपोर्ट मेरे पास उपलब्ध नहीं है, लेकिन मैं संयुक्त राष्ट्र (UN), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP), और अन्य विश्वसनीय स्रोतों जैसे ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) के आधार पर नवीनतम आँकड़े और विश्लेषण प्रस्तुत करूँगा।
विश्व भूख की स्थिति: एक अवलोकन
विश्व में भूख और कुपोषण एक गंभीर वैश्विक चुनौती बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र और विश्व खाद्य कार्यक्रम की हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कई कारक जैसे युद्ध, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक अस्थिरता, और बेरोजगारी भूख को बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं। 2030 तक “शून्य भूख” (Zero Hunger) का लक्ष्य हासिल करना अब लगभग असंभव माना जा रहा है।
कितने लोगों को भोजन नहीं मिल रहा?
वैश्विक आँकड़े:

2023 में, संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 73.3 करोड़ लोग (733 मिलियन) तीव्र भूख का सामना कर रहे थे, यानी दुनिया की हर 11 में से 1 व्यक्ति को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा था।
इसके अलावा, 310 करोड़ लोग (3.1 बिलियन) स्वस्थ और पौष्टिक भोजन तक पहुँच नहीं बना पाए, जिसका मतलब है कि वे या तो कम खाना खा रहे हैं या खराब गुणवत्ता वाला भोजन खा रहे हैं।
2024 में यह संख्या स्थिर रही, लेकिन कुछ क्षेत्रों में भूख की स्थिति और गंभीर हुई, खासकर अफ्रीका और दक्षिण एशिया में।
क्षेत्रीय स्थिति:
अफ्रीका: सबसे गंभीर स्थिति यहाँ है, जहाँ पाँच में से एक व्यक्ति (20% आबादी) भूख से जूझ रहा है।
दक्षिण एशिया: भारत और पड़ोसी देशों में भूख का स्तर “गंभीर” श्रेणी में है। भारत में 2024 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) में 27.3 स्कोर के साथ 127 देशों में 105वाँ स्थान है, जो भूख और कुपोषण की चुनौतियों को दर्शाता है।
लैटिन अमेरिका और मध्य पूर्व: यहाँ भी भूख बढ़ रही है, लेकिन अफ्रीका और दक्षिण एशिया की तुलना में स्थिति कम गंभीर है।
भारत में भूख की स्थिति
आँकड़े:

भारत में 2022 में 35 करोड़ लोग रोज़ाना पर्याप्त भोजन से वंचित थे, और 14 करोड़ लोग रात में भूखे पेट सोते थे।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 के अनुसार, भारत में 18.7% बच्चे अतिकुपोषण (child wasting) से पीड़ित हैं, जो विश्व में सबसे अधिक है।
58.1% महिलाएँ (15-24 वर्ष) में एनीमिया की समस्या है, जो भोजन की कमी और पोषण असमानता को दर्शाती है।
कुपोषण:
5 वर्ष से कम उम्र के 34% बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से कम वज़न या लंबाई वाले हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण की दर शहरी क्षेत्रों (35% बनाम 22%) से अधिक है।
बेरोजगारी और भूख का संबंध
बेरोजगारी भूख को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारक है, क्योंकि यह लोगों की आय और भोजन खरीदने की क्षमता को सीधे प्रभावित करता है।
वैश्विक स्तर पर:
आर्थिक अस्थिरता: कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध, और वैश्विक मंदी ने नौकरियों पर असर डाला। लाखों लोग बेरोजगार हुए, जिससे उनके पास भोजन खरीदने के लिए पैसे नहीं रहे।
अनौपचारिक क्षेत्र: विकासशील देशों में, जहाँ अधिकांश लोग अनौपचारिक क्षेत्र (जैसे दिहाड़ी मज़दूरी) में काम करते हैं, लॉकडाउन और आर्थिक संकट ने उनकी आय को लगभग शून्य कर दिया। उदाहरण के लिए, अफ्रीका और दक्षिण एशिया में दिहाड़ी मज़दूरों को भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ा।
संयुक्त राष्ट्र की 2024 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि आर्थिक संकट के कारण 73 करोड़ लोगों को भूख का सामना करना पड़ा।
भारत में बेरोजगारी और भूख:
बेरोजगारी दर: भारत में 2024 में बेरोजगारी दर 7-8% के आसपास रही, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अनौपचारिक रोज़गार की कमी ने स्थिति को और खराब किया।
प्रवासी मज़दूर: कोविड-19 के बाद, लाखों प्रवासी मज़दूरों ने शहरों में नौकरियाँ खो दीं और गाँवों में लौटने पर भी उन्हें रोज़गार नहीं मिला। इससे उनके परिवारों को भोजन की कमी का सामना करना पड़ा।
महिलाएँ और बच्चे: बेरोजगारी ने महिलाओं और बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित किया। घरों में भोजन की असमान वितरण के कारण महिलाएँ और लड़कियाँ अक्सर कम या खराब गुणवत्ता वाला भोजन खाती हैं।
उदाहरण: बिहार के जमुई में बीड़ी उद्योग से जुड़े 10 लाख लोग बेरोजगारी के कारण भूख के कगार पर पहुँच गए।
अन्य कारक:

महँगाई: खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने गरीब परिवारों के लिए भोजन खरीदना मुश्किल कर दिया। 2024 में वैश्विक खाद्य मुद्रास्फीति ने भूख को और बढ़ाया।
सामाजिक असमानता: बेरोजगारी ने सामाजिक और लैंगिक असमानताओं को बढ़ाया। गरीब परिवारों में, पुरुषों को भोजन में प्राथमिकता दी जाती है, जिससे महिलाएँ और बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं।
भूख के अन्य कारण
जलवायु परिवर्तन:
सूखा, बाढ़, और अनियमित बारिश ने कृषि उत्पादन को प्रभावित किया। अफ्रीका और दक्षिण एशिया में फसलें नष्ट होने से भोजन की कमी हुई।
भारत में, जलवायु परिवर्तन के कारण 2023-24 में कुछ क्षेत्रों में खाद्य उत्पादन में 10-15% की कमी देखी गई।
युद्ध और संघर्ष:
रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखला को बाधित किया, जिससे गेहूँ और तेल की कीमतें बढ़ीं।
अफ्रीका और मध्य पूर्व में चल रहे संघर्षों ने लाखों लोगों को भोजन से वंचित कर दिया।
खाद्य बर्बादी:
वैश्विक स्तर पर, 93.1 करोड़ टन खाना हर साल बर्बाद होता है, जो कुल खाद्य उत्पादन का 17% है। भारत में प्रति व्यक्ति 50 किलो खाना सालाना बर्बाद होता है।
अगर इस बर्बादी को रोका जाए, तो भूख को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
भूख को कम करने के उपाय
रोज़गार सृजन:
सरकारों को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर बढ़ाने चाहिए। भारत में मनरेगा जैसे कार्यक्रमों को और मज़बूत करना होगा।
छोटे और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देने से बेरोजगारी कम हो सकती है।
खाद्य सुरक्षा:
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को और प्रभावी बनाना चाहिए ताकि गरीबों तक रियायती दरों पर अनाज पहुँचे।
वैश्विक स्तर पर, खाद्य सहायता कार्यक्रमों को मज़बूत करने के लिए अमीर देशों को अधिक फंड देना होगा।
कृषि सुधार:
जलवायु-अनुकूल खेती को बढ़ावा देना, जैसे सूखा-प्रतिरोधी फसलें।
छोटे किसानों को बीज, उर्वरक, और तकनीक प्रदान करना।
महिलाओं और बच्चों पर ध्यान:
मातृ और शिशु पोषण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
लैंगिक असमानता को कम करने के लिए जागरूकता अभियान चलाना।
खाद्य बर्बादी रोकना:
गोदामों और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार।
लोगों को खाद्य बर्बादी के प्रति जागरूक करना।
निष्कर्ष
विश्व में भूख की स्थिति गंभीर बनी हुई है, जिसमें 73.3 करोड़ लोग तीव्र भूख का सामना कर रहे हैं, और 310 करोड़ लोग पौष्टिक भोजन से वंचित हैं। भारत में 35 करोड़ लोग भोजन की कमी से जूझ रहे हैं, और बेरोजगारी ने इस समस्या को और गंभीर कर दिया है। बेरोजगारी, जलवायु परिवर्तन, युद्ध, और खाद्य बर्बादी जैसे कारक भूख को बढ़ा रहे हैं। इसे कम करने के लिए रोज़गार सृजन, खाद्य सुरक्षा, और सामाजिक समानता पर ध्यान देना ज़रूरी है।




