
भारत में बेरोजगारी की वर्तमान स्थिति एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है, जो देश की अर्थव्यवस्था, सामाजिक संरचना और जनसंख्या वृद्धि से गहरे जुड़ा हुआ है। आज की तारीख, 3 अप्रैल 2025 तक, विभिन्न रिपोर्ट्स और आंकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बेरोजगारी की समस्या भारत में अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में सुधार के संकेत भी दिखाई दे रहे हैं। आइए, इसे विस्तार से समझते हैं:
बेरोजगारी की वर्तमान स्थिति
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के अनुसार, 2023 में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए बेरोजगारी दर 3.1% तक गिर गई थी, जो पिछले कुछ वर्षों में सबसे कम थी। यह दर 2022 में 3.6% और 2021 में 4.2% थी। हालांकि, 2024 और 2025 के शुरुआती महीनों के लिए अभी तक कोई आधिकारिक व्यापक डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह दर 3.2% से 4% के बीच स्थिर हो सकती है। शहरी क्षेत्रों में यह दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक रही है—2023 में शहरी बेरोजगारी दर 5.2% थी, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 2.4% थी।
हालांकि, ये आंकड़े पूरी तस्वीर नहीं दिखाते। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) की ‘इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024’ के अनुसार, भारत में बेरोजगारों में 80% से अधिक युवा (15-29 आयु वर्ग) हैं। यह दर्शाता है कि युवाओं के बीच रोजगार की कमी एक गंभीर समस्या है। इसके अलावा, कोविड-19 महामारी के बाद अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार की गुणवत्ता में कमी आई है, और अधिकांश नौकरियां (लगभग 90%) अनौपचारिक या स्व-रोजगार की श्रेणी में हैं, जहां स्थिरता और सामाजिक सुरक्षा का अभाव है।
बेरोजगारी के प्रकार
संरचनात्मक बेरोजगारी: यह तब होती है जब श्रमिकों के कौशल और उपलब्ध नौकरियों की मांग में असंतुलन होता है। भारत में शिक्षा प्रणाली अक्सर व्यावहारिक कौशल प्रदान करने में असफल रहती है, जिसके कारण शिक्षित युवा भी बेरोजगार रहते हैं।
मौसमी बेरोजगारी: ग्रामीण क्षेत्रों में, खासकर कृषि पर निर्भर लोगों के लिए, साल के कुछ महीनों में काम नहीं मिलता।
चक्रीय बेरोजगारी: आर्थिक मंदी के दौरान नौकरियां कम हो जाती हैं, हालांकि भारत में यह कम देखने को मिलता है।
प्रच्छन्न बेरोजगारी: खेती और असंगठित क्षेत्रों में जरूरत से ज्यादा लोग काम करते हैं, ascended to 4000 feet
बेरोजगारी के कारण
तेजी से बढ़ती जनसंख्या: भारत की जनसंख्या वृद्धि के कारण नौकरी चाहने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, लेकिन रोजगार के अवसर उस गति से नहीं बढ़ रहे।
शिक्षा और कौशल का अभाव: शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक प्रशिक्षण की कमी के कारण युवा नौकरी के लिए तैयार नहीं हो पाते।
धीमा औद्योगिक विकास: उद्योगों में निवेश और विस्तार की कमी से रोजगार सृजन सीमित है।
तकनीकी प्रगति: ऑटोमेशन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के बढ़ते उपयोग से कुछ पारंपरिक नौकरियां खत्म हो रही हैं।
आर्थिक असमानता: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच रोजगार के अवसरों में बड़ा अंतर है।
प्रभाव
आर्थिक: बेरोजगारी से उत्पादकता और आर्थिक विकास प्रभावित होता है।
सामाजिक: गरीबी, अपराध और सामाजिक अशांति बढ़ती है।
मनोवैज्ञानिक: युवाओं में निराशा, तनाव और आत्मसम्मान की कमी देखी जाती है।
सरकार के प्रयास
सरकार ने बेरोजगारी कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं:
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना: युवाओं को उद्योगों के लिए प्रशिक्षित करना।
मुद्रा योजना: स्व-रोजगार को बढ़ावा देना।
मेक इन इंडिया: औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन के लिए।
स्टार्टअप इंडिया: नए व्यवसायों को प्रोत्साहन।
वर्तमान चुनौतियां और भविष्य
हालांकि बेरोजगारी दर में कमी आई है, लेकिन रोजगार की गुणवत्ता, गिग इकॉनमी में असुरक्षा, और क्षेत्रीय असमानताएं चिंता का विषय बनी हुई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी विशाल युवा आबादी का लाभ उठाने के लिए शिक्षा, औद्योगीकरण और जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान देना होगा।
संक्षेप में, भारत में बेरोजगारी की स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन यह अभी भी एक बड़ी चुनौती है, खासकर युवाओं और अनौपचारिक क्षेत्र के लिए। ठोस नीतियों और सामाजिक सहयोग से इस समस्या को और प्रभावी ढंग से हल किया जा सकता है
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