उद्धव बाळासाहेब ठाकरे गट का एजेंडा सिर्फ स्वार्थ और सत्ता उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा उद्धव ठाकरे पर तीखा प्रहार*

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पी.वी.आनंदपद्मनाभन

*मुंबई,

उद्धव ने डोम को अपना राजनीतिक अखाड़ा बना दिया। उन्होंने मराठी मानूस से जुड़े किसी भी मुद्दे को नहीं उठाया। आज का उनका एजेंडा सिर्फ स्वार्थ और सत्ता की भूख तक सीमित था। यह तीखा हमला महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे पर किया।

ठाणे में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उपमुख्यमंत्री शिंदे ने कहा, उद्धव ठाकरे के भाषण में सिर्फ कड़वाहट, जलन, द्वेष और सत्ता की बेचैनी झलक रही थी। कुछ नेताओं ने कहा कि उनके पास न झंडा है न एजेंडा। अगर किसी ने यह संयम दिखाया, तो दूसरे ने स्वार्थ का झंडा और सत्ता का एजेंडा खुलकर सबके सामने रख दिया। आज का कार्यक्रम मराठी जनमानस के लिए बेहद निराशाजनक रहा।”

उन्होंने आगे कहा, “तीन साल पहले हमने अन्याय के खिलाफ विद्रोह किया था। उद्धव ठाकरे को अपनी भाषा का संयम रखना चाहिए। उन्हें अच्छी तरह याद होना चाहिए कि जब मैं उठता हूं तो उसके गंभीर परिणाम होते हैं। उद्धव ठाकरे सिर्फ शब्दों का शोर हैं, साहस नहीं। वह विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार चुके हैं और अब दूसरों के सहारे उठने की कोशिश कर रहे हैं।”

मराठी हित के लिए किए गए कार्यों का उल्लेख करते हुए शिंदे ने कहा, “मुख्यमंत्री रहते हुए हमने राज्य गीत को मान्यता देने का निर्णय लिया, और आज का यह कार्यक्रम उसी गीत से आरंभ हुआ। हमने मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए प्रस्ताव भेजा, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुरंत स्वीकृति दी। इसके बावजूद आज प्रधानमंत्री मोदी पर भी हमला किया गया — यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे उनकी मानसिकता, द्वेष और सत्ता की भूख उजागर होती है।”

उपमुख्यमंत्री शिंदे ने सवाल किया, “उद्धव ठाकरे जवाब दें — मुंबई में मराठी जनसंख्या क्यों घटी? मराठी प्रतिनिधित्व क्यों कम होता गया? उन्होंने 2019 में बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा को छोड़ दिया, और जनता ने विधानसभा में उन्हें करारा जवाब दिया। शिवसेना ने 60 सीटें जीतीं, जबकि उद्धव ने 100 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल 20 पर जीत हासिल की। सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए उन्होंने जनादेश, बालासाहेब की विचारधारा और हिंदुत्व से विश्वासघात किया।”

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