
पोलैंड में हुए राष्ट्रपति चुनाव में विरोधी गुट की जीत के बाद अब प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क 11 जून को संसद में विश्वास हासिल करेंगे। गठबंधन मतभेद के बीच टस्क अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में करोल नवरोकी की जीत के बाद देश में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है।
पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने मंगलवार को एलान किया कि उनकी सरकार पर 11 जून को संसद में विश्वास मत कराया जाएगा। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब राष्ट्रपति चुनाव में टस्क के करीबी उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा है, जिससे देश में नई राजनीतिक परिस्थिति बन गई है। टस्क ने कहा कि राजनीतिक हालात जरूर बदले हैं क्योंकि हमारे पास अब नया राष्ट्रपति है, लेकिन संविधान और नागरिकों की उम्मीदें नहीं बदली हैं।
बता दें कि हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव में वारसॉ के उदारवादी मेयर रफाल ट्र्जासकोव्स्की को रूढ़िवादी उम्मीदवार कारोल नवरोकी से कड़े मुकाबले में हार मिली। नवरोकी को 50.89% वोट मिले और उन्हें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन प्राप्त था। अब इसका असर ऐसे भी पड़ सकता है कि नवरोकी की जीत से टस्क की यूरोपीय समर्थक नीतियों को झटका लग सकता है क्योंकि राष्ट्रपति के पास वेटो और विदेश नीति में दखल देने की शक्ति होती है।
क्यों जरूरी हुआ विश्वास मत?
टस्क की गठबंधन सरकार में कई दल शामिल हैं, जैसे कि वामपंथी, मध्यमार्गी और ग्रामीण-रूढ़िवादी। इन दलों में कई मुद्दों पर सहमति नहीं बन पा रही है, जैसे कि गर्भपात कानून को उदार बनाना। ऐसे में कुछ सहयोगी दलों की निष्ठा पर सवाल उठ रहे हैं। इसको लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तुस्क यह कदम उठाकर अपना राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं। हालांकि, अभी भी उनके गठबंधन के पास संसद में बहुमत है और ऐसा माना जा रहा है कि वह विश्वास मत में जीत सकते हैं।
नवरोकी के जीतने से टस्क की बढ़ेंगी मुश्किलें
अपने सहयोगी की हार के बाद टस्क ने एक वीडियो बयान में कहा कि अगर नवरोकी सहयोग की इच्छा दिखाते हैं, तो वे उनके साथ काम करने को तैयार हैं। हालांकि, राष्ट्रपति के पास कानूनों पर वीटो का अधिकार होता है, जिससे टस्क की यूरोप समर्थक नीतियों को लागू करना मुश्किल हो सकता है।
नवरोकी की जीत के बाद पोलैंड की राह
देखा जाए तो ये नवरोकी के जीतने से पोलैंड अब और अधिक राष्ट्रवादी और परंपरावादी राह पर जा सकता है। कारण साफ है कि वे एक इतिहासकार और शौकिया मुक्केबाज हैं और पूर्व में इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल रिमेंबरेंस के प्रमुख रह चुके हैं। उन्होंने सोवियत सेना के स्मारकों को हटाने का नेतृत्व किया, जिस पर रूस ने उन्हें वांछित घोषित किया। हालांकि उनपर आपराधिक लोगों से जुड़े होने और एक सड़क झगड़े में शामिल होने के आरोप लगे, लेकिन उन्होंने इन आरोपों को राजनीतिक साजिश बताया। उनके समर्थकों ने उन्हें पारंपरिक और देशभक्त मूल्यों का प्रतीक माना है।
