Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर फिर क्यों बढ़ा विवाद? समझिए BMC चुनाव से पहले बीजेपी के लिए क्या होंगी मुश्किलें

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Maharashtra Politics: हिंदी को लेकर महाराष्ट्र सरकार के नए आदेश के भाषाई टकराव के चलते सियासी पारा फिर चढ़ गया है। MNS से लेकर शिवसेना यूबीटी और कांग्रेस देवेंद्र फडणवीस सरकार पर हमलावर हैं।

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र सरकार के आदेश ने राज्य में एक बार फिर “हिंदी थोपने” वाला विवाद खड़ा करक दिया है। इसको लेकर दो महीने पहले जब विवाद हुआ था तो सरकार ने राज्य बोर्ड के अंतर्गत मराठी और हिंदी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का अपना निर्णय वापस ले लिया था

वही मंगलवार को जारी नए सरकारी नोटिफिकेश में राज्य सरकार ने अनिवार्य शब्द हटा दिया है लेकिन तीसरी भाषा के रूप में हिंदी के विकल्प पर प्रतिबंधात्मक शर्तों के कारण, कई लोग दावा कर रहे हैं कि यह हिंदी के लिए एक नया कदम है। हालांकि, राज्य सरकार अभी भी इस बात पर जोर दे रही है कि हिंदी सिर्फ़ एक वैकल्पिक भाषा है।

पिछले आदेश में क्यों हुआ था विवाद?

राज्य सरकार के पिछले आदेश में कहा गया था कि मराठी और अंग्रेजी माध्यम वाले राज्य बोर्ड स्कूलों में कक्षा 1 से तीन भाषाएं पढ़ाई जाएंगी, जबकि हिंदी अनिवार्य तीसरी भाषा होगी। महाराष्ट्र में इन स्कूलों के लिए स्थापित प्रथा माध्यमिक विद्यालय या कक्षा 5 के बाद छात्रों को तीसरी भाषा शुरू करने की है। राजनीतिक दलों और शिक्षा विशेषज्ञों की आलोचना के बाद आदेश वापस ले लिया गया और आश्वासन दिया गया कि एक नया प्रस्ताव जारी कर स्पष्ट किया जाएगा कि हिंदी तीसरी भाषा के रूप में सिर्फ एक विकल्प होगी।

नए आदेश में सरकार ने क्या कहा?

सरकार के नए आदेश में कहा गया कि कक्षा 1 से 5 तक के लिए हिंदी आम तौर पर तीसरी भाषा होगी। अगर छात्र हिंदी के बजाय किसी अन्य भारतीय भाषा को अपनी तीसरी भाषा के रूप में पढ़ना चाहते हैं”, तो उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी जाएगी, बशर्ते “उसी स्कूल में उसी कक्षा के कम से कम 20 छात्र उस भाषा में पढ़ाई करने वाले हों। यदि ऐसा नहीं हुआ तो ऑनलाइन तरीके से पढ़ाया जाएगा।

महाराष्ट्र सरकार के आदेश पर सवाल क्यों?

सरकार के आदेश पर सवालों की चर्चा करें तो आलोचकों के अनुसार संशोधित आदेश हिंदी के लिए कोई विकल्प प्रदान करने में विफल रहा है, सिवाय इसके कि यह एक भारतीय भाषा होनी चाहिए। उनका कहना है कि कई भारतीय भाषाएँ हैं और राज्य को यह स्पष्ट करना होगा कि क्या पढ़ाया जा सकता है और पाठ्यक्रम को परिभाषित करना होगा।

शिक्षाविद् किशोर दरक ने तीसरी भाषाओं के लिए एक संरचित पाठ्यक्रम की आवश्यकता की भी पहचान की। उन्होंने कहा कि भाषाओं के लिए शिक्षण पद्धति अलग-अलग है। धारणा यह है कि जो मराठी पढ़ा सकते हैं, वे हिंदी भी पढ़ा सकते हैं। दोनों भाषाओं की लिपि समान है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चों या शिक्षकों को सीखने के मामले में कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना चाहिए।

शिक्षकों ने क्या उठाए सवाल?

शिक्षकों ने यह भी सवाल उठाया है कि जब छात्र वैकल्पिक भाषा सीखना चाहते हैं तो सरकार उनके लिए क्या व्यवस्था करेगी। कुछ लोगों ने तो दूसरी भाषा सीखने के लिए प्रति कक्षा 20 छात्रों की आवश्यकता पर भी आपत्ति जताई है। वरिष्ठ शिक्षाविद् वसंत कल्पांडे ने कहा कि महाराष्ट्र में 80 प्रतिशत से अधिक सरकारी स्कूल इस मानदंड को पूरा नहीं कर पाएंगे, जिससे हिंदी स्वतः ही डिफ़ॉल्ट तीसरी भाषा बन जाएगी।

कल्पांडे ने कहा कि बहुत से सरकारी स्कूलों में एक कक्षा में कुल 20 से कम छात्र नामांकित हैं। तब हिंदी डिफ़ॉल्ट रूप से तीसरी भाषा बन जाएगी और बिना पाठ्यक्रम, बिना पाठ्यपुस्तकों और बिना शिक्षकों के, कोई भी सरकारी स्कूल हिंदी का विकल्प प्रदान करने में सक्षम नहीं होगा।

सरकार बोली- मराठी अनिवार्य

नए आदेश पर बढ़े विवाद के बीच राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने बुधवार शाम को स्पष्टीकरण जारी किया। मराठी को दिए जाने वाले महत्व पर जोर देते हुए भुसे ने कहा कि सभी स्कूलों में मराठी अनिवार्य विषय होगी, चाहे पढ़ाई का माध्यम कुछ भी हो। मराठी न पढ़ाने वाले स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। स्कूल शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि हिंदी के विकल्प पर जल्द ही विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे।

मनसे ने सबसे पहले खोला था मोर्चा

अप्रैल में मूल आदेश जारी होने के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने इस मुद्दे पर सबसे आक्रामक रुख अपनाया, जिसमें उनके चचेरे भाई और शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे भी शामिल हो गए। राज्य कांग्रेस ने भी क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर राज्य के स्कूलों में कथित तौर पर हिंदी थोपे जाने का कड़ा विरोध किया। मनसे ने एक बार फिर नए सरकारी प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की है और चेतावनी दी है कि इस तरह के कदम से राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को खतरा है।

राज ठाकरे ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछा कि हिंदी को सिर्फ़ महाराष्ट्र में ही क्यों जबरन पढ़ाया जा रहा है? क्या आप बिहार या देश के किसी और हिस्से में मराठी को तीसरी भाषा के तौर पर पढ़ाने जा रहे हैं? मनसे प्रमुख ने स्कूल प्रिंसिपलों को भी पत्र लिखकर इस आदेश को लागू न करने की सलाह दी है। कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार ‘केवल शब्दों से खेल रही है।’ महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख हर्षवर्धन सपकाल ने आरोप लगाया कि यह सभी क्षेत्रों पर हिंदी थोपने और क्षेत्रीय संस्कृति को नष्ट करने की आरएसएस की रणनीति का हिस्सा है।

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि तीन-भाषा फॉर्मूला नई शिक्षा नीति (एनईपी) की सिफारिशों के अनुसार है। देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि हम अंग्रेजी का समर्थन कर रहे हैं लेकिन भारतीय भाषाओं से नफरत करते हैं। यह उचित नहीं है। भारतीय भाषाएँ अंग्रेजी से बेहतर हैं… पहले हमने कहा था कि तीसरी भाषा हिंदी होनी चाहिए। अब हमने ‘अनिवार्य’ खंड हटा दिया है। छात्र कोई भी अन्य तीसरी भाषा सीख सकते हैं, लेकिन एक कक्षा में 20 छात्र होने चाहिए। हम शिक्षक उपलब्ध कराएंगे। हम ऑनलाइन शिक्षण भी प्रदान करेंगे।

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