

राजेश लक्ष्मण गावड़े
मुख्य संपादक (जन कल्याण टाइम)
भारत को होने वाले लाभ
निर्यात में वृद्धि का अवसर
अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ युद्ध के कारण दोनों देशों के उत्पाद एक-दूसरे के लिए महंगे हो गए हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने चीन से आने वाले सामानों पर 104% तक टैरिफ लगा दिया है, जबकि चीन ने जवाब में अमेरिकी उत्पादों पर 84% तक शुल्क बढ़ाया है। इससे अमेरिकी बाजार में चीनी सामान महंगे हो गए हैं, जिसके चलते अमेरिकी कंपनियाँ और उपभोक्ता वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश कर रहे हैं। भारत इस स्थिति का लाभ उठाकर अपने निर्यात को बढ़ा सकता है। खासकर निम्नलिखित क्षेत्रों में भारत को फायदा मिल सकता है:
कपड़ा और वस्त्र: भारत पहले से ही कपड़ा निर्यात में मजबूत है। अमेरिका में चीनी कपड़ों की कीमत बढ़ने से भारतीय वस्त्रों की मांग बढ़ सकती है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटो पार्ट्स: भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल पार्ट्स का उत्पादन बढ़ रहा है। यहाँ से निर्यात बढ़ने की संभावना है।
फार्मास्यूटिकल्स: भारत जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। अमेरिका में चीनी दवाओं पर निर्भरता कम होने से भारत को फायदा होगा।
रसायन और अन्य वस्तुएँ: रासायनिक उत्पादों में भी भारत अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
प्रतिस्पर्धी देशों पर बढ़त
अमेरिका ने भारत पर 27% टैरिफ लगाया है, जो अन्य एशियाई देशों जैसे वियतनाम (46%), बांग्लादेश (37%), इंडोनेशिया (32%), और चीन (104%) की तुलना में कम है। इससे भारत के उत्पाद अमेरिकी बाजार में इन देशों की तुलना में सस्ते रहते हैं। यह भारत को एक प्रतिस्पर्धी बढ़त देता है, जिससे निर्यातकों को नए ऑर्डर मिलने की संभावना बढ़ती है।
चाइना प्लस वन रणनीति का लाभ
कई वैश्विक कंपनियाँ अब “चाइना प्लस वन” रणनीति अपना रही हैं, यानी वे अपनी आपूर्ति श्रृंखला को सिर्फ चीन पर निर्भर नहीं रखना चाहतीं। इस रणनीति के तहत भारत एक आकर्षक विकल्प बन सकता है। भारत में सस्ता श्रम, बढ़ता बुनियादी ढांचा, और सरकार की “मेक इन इंडिया” पहल इस दिशा में सहायक हैं। इससे विदेशी निवेश (FDI) और रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं।
द्विपक्षीय व्यापार समझौते का मौका
भारत अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते (Bilateral Trade Agreement) पर बातचीत कर रहा है। यह समझौता भारत को टैरिफ के प्रभाव को कम करने और अमेरिकी बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद कर सकता है। भारत पहला देश है जिसके साथ अमेरिका ने इस तरह की वार्ता शुरू की है, जो इसे “फर्स्ट मूवर एडवांटेज” देता है।
नए बाजारों की खोज
टैरिफ युद्ध के कारण कुछ क्षेत्रों (जैसे मरीन प्रोडक्ट्स, रत्न और आभूषण) पर असर पड़ सकता है, लेकिन भारत नए बाजार जैसे बहरीन, कतर, और यूरोप में मुफ्त व्यापार समझौतों (FTA) के जरिए अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है। इससे निर्यात में विविधता आएगी।
संभावित चुनौतियाँ
आयात लागत में वृद्धि
भारत कई इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, मशीनरी, और कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर है। यदि चीन से आने वाले सामानों की कीमत बढ़ती है, तो भारतीय निर्माताओं और उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी। इससे घरेलू उत्पादन लागत बढ़ सकती है और महंगाई पर दबाव पड़ सकता है।
वैश्विक मंदी का जोखिम
अमेरिका और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हैं। इनके बीच टैरिफ युद्ध से वैश्विक व्यापार प्रभावित हो सकता है, जिससे मंदी की आशंका बढ़ती है। यदि ऐसा हुआ, तो भारत के निर्यात पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि मांग कम हो सकती है।
प्रतिस्पर्धा का दबाव
भले ही भारत को कुछ क्षेत्रों में फायदा हो, लेकिन वियतनाम, इंडोनेशिया जैसे देश भी इस मौके का लाभ उठाने की कोशिश करेंगे। भारत को अपनी उत्पादन क्षमता, गुणवत्ता, और लॉजिस्टिक्स में सुधार करना होगा ताकि वह प्रतिस्पर्धा में आगे रहे।
भारत के लिए रणनीति
उत्पादन बढ़ाना: भारत को अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता बढ़ानी होगी, खासकर उन क्षेत्रों में जो अमेरिकी बाजार में मांग रखते हैं।
नीतिगत स्थिरता: ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बेहतर करना और लॉजिस्टिक्स में निवेश करना जरूरी है।
सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में निवेश: भविष्य के लिए भारत को सेमीकंडक्टर जैसे उच्च-तकनीक क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनना होगा।
चीन पर निर्भरता कम करना: आयात के लिए वैकल्पिक स्रोत ढूंढने होंगे ताकि लागत नियंत्रण में रहे।
निष्कर्ष
अमेरिका और चीन का टैरिफ युद्ध भारत के लिए एक सुनहरा अवसर हो सकता है, बशर्ते भारत इसे सही तरीके से भुनाए। निर्यात बढ़ाने, विदेशी निवेश आकर्षित करने, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी भूमिका मजबूत करने का मौका है। हालांकि, इसके लिए सरकार और उद्योगों को मिलकर काम करना होगा ताकि चुनौतियों का सामना करते हुए अधिकतम लाभ उठाया जा सके। यह युद्ध भारत को आर्थिक रूप से मजबूत करने का एक रास्ता खोल सकता है, अगर कदम सोच-समझकर उठाए जाएँ।




