Tariff War: आपदा में अवसर…मैन्युफैक्चरिंग हब बनेगा भारत, ट्रंप की नीति से अमेरिका और चीन को लगेगा झटका

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अमेरिका की ओर से 26 फीसदी टैरिफ लगाए जाने के बाद वैश्विक स्तर पर वे कंपनियां भारत की ओर रुख कर सकती हैं। जो अमेरिका और चीन के साथ वियतनाम जैसे देशों के भारी टैरिफ से जूझ रही है उनके लिए भारत नए रास्ते खोलेगा।

नई दिल्ली: अमेरिका की ओर से 26 फीसदी टैरिफ लगाए जाने के बावजूद भारत दुनिया के प्रमुख लाभार्थियों की तुलना में शीर्ष पर रहेगा। इससे एक तो भारत को विनिर्माण (Manufacturing) में अपनी महारत हासिल करने में मदद मिलेगी। दूसरे, वैश्विक स्तर पर वे कंपनियां भारत की ओर रुख कर सकती हैं जो अमेरिका और चीन के साथ वियतनाम जैसे देशों के भारी टैरिफ से जूझ रही हैं।

वेंचुरा सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर जो टैरिफ दर लगाई है, वह दर अन्य वैश्विक व्यापारिक भागीदारों पर लगाए गए भारी जुर्माने की तुलना में मामूली है। यह अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय वाणिज्य रणनीतियों के पुनर्मूल्यांकन के बीच वैश्विक व्यापार गतिशीलता में भारत की बढ़ती अनुकूल स्थिति को रेखांकित करता है।यह दर्शाता है कि बातचीत के चैनल खुले हैं। यह सतर्क निष्पादन वैश्विक व्यापार भावना में नए व्यवधानों के बजाय रचनात्मक विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। ट्रंप की टैरिफ रणनीति अमेरिका में मांग को झटका दे सकती है। इससे वैश्विक आपूर्ति में वृद्धि हो सकती है।

चीन को उठाना पड़ सकता है नुकसान

भारत पर अपेक्षाकृत कम टैरिफ से चीन को नुकसान उठाना पड़ सकता है। चीन और वियतनाम में एपल या जो बड़ी कंपनियों के कांट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर हैं, वे अब भारत का रुख कर सकते हैं। इससे भारत को विनिर्माण तंत्र खड़ा करने में मदद मिलेगी।

ट्रंप से पहले बाइडेन प्रशासन ने भी चीन से बाहर विनिर्माण की पहल की थी। यह रुझान और तेज होगा। भारत का वर्तमान निर्यात 750-800 अरब डॉलर है और चीन का 3.3 लाख करोड़ डॉलर है। इस स्थिति में भारत के पास वृद्धि के लिए पर्याप्त गुंजाइश है।

निर्यात बढ़ाने का मौका

भारत को निर्यात क्षमता बढ़ाने का अवसर कोविड-19 संकट के विपरीत, जिसने मांग और आपूर्ति दोनों को एक साथ झकझोर दिया, मौजूदा स्थिति आपूर्ति संचालित है, जो वैश्विक विनिर्माण में संरचनात्मक बदलावों से उपजी है। बढ़ती क्षमताओं और अनुकूल नीतियों के साथ भारत की निर्यात क्षमता बढ़ने वाली है।संभावित वैश्विक ब्याज दर में कमी से खपत को बढ़ावा मिल सकता है और इससे भारत की अर्थव्यवस्था में और तेजी आ सकती है। भारत की प्रतिस्पर्धी बढ़त निर्यात तक सीमित नहीं है। इसे कुशल श्रमिकों, मजबूत प्रणाली, राजनीतिक स्थिरता और कई देशों से बेहतर संबंधों से भी लाभ मिलता है।

परिवर्तन का लाभ उठाने में भारत आगे

वैश्विक व्यापार परिदृश्य एक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। भारत इस परिवर्तन का लाभ उठाने के लिए अद्वितीय स्थिति में है। मामूली टैरिफ, बढ़ते विनिर्माण आधार और संरचनात्मक लाभों के साथ भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण कड़ी बन सकता है।भारत की नियति अमेरिका और पश्चिम के साथ अधिक निकटता से जुड़ना है, हालांकि, अमेरिका की कूटनीति के प्रति सतर्क भी रहना जरूरी है। भारत को पश्चिमी भागीदारों के साथ स्वायत्त प्रणालियों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसी अत्याधुनिक भविष्य की तकनीकों में निवेश करने की जरूरत है।

बेहतर उम्मीद की किरण

टैरिफ का मामला भारत के लिए एक उम्मीद की किरण है, क्योंकि यह दुनिया की सबसे अधिक संरक्षणवादी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। अगर भारत अमेरिका के साथ एक विशेष समझौता करने में सक्षम होता है, जिसके तहत उसे अपने टैरिफ में पर्याप्त कमी करने की रियायत देनी होती है, तो यह वास्तव में भारत के लिए बहुत अच्छा होगा। भारतीय टैरिफ में काफी कमी आ सकती है और इससे भारत में दक्षता और उत्पादकता बढ़ेगी और विकास में वृद्धि होगी।

अपनी फर्मों को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनाने की जरूरत

भारत अपनी मदद नहीं कर रहा है, क्योंकि यह इस संभावना को कम कर रहा है कि उसकी फर्म वास्तव में वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी होंगी। ऐसे में उसे अपनी फर्मों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की जरूरत है। भारत की नियति दुनिया के अन्य महान मुक्त बाजार लोकतंत्रों के साथ अधिक निकटता से जुड़ना है।

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