


Press photographer Shailendra Sawant.
(NVS. Guj.)
- पानी की कमी
हालांकि सरदार सरोवर बांध नर्मदा नदी पर बना है और इसका उद्देश्य सिंचाई, पेयजल और बिजली उत्पादन है, लेकिन इसके बावजूद आसपास के आदिवासी गांवों में पानी की भारी कमी देखी जाती है। कई गांवों में लोग रोजाना 10-15 किलोमीटर तक पैदल चलकर, नंगे पैर तपती धरती पर, पानी लाने को मजबूर हैं। यह विडंबना है कि जिस नदी के पानी को शहरों तक पहुंचाया जा रहा है, उसी के किनारे बसे गांव प्यासे रहते हैं। पाइपलाइन और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण ये समुदाय टैंकरों या दूर के कुओं पर निर्भर हैं। गर्मियों में यह समस्या और गंभीर हो जाती है। - विस्थापन और अपर्याप्त पुनर्वास
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी और सरदार सरोवर बांध के निर्माण के लिए बड़ी संख्या में आदिवासी परिवारों को उनकी पुश्तैनी जमीनों से विस्थापित किया गया। इनमें से कई लोगों को उचित मुआवजा या पुनर्वास नहीं मिला। जिन्हें पुनर्वास कॉलोनियों में बसाया गया, वहां बुनियादी सुविधाएं जैसे बिजली, पानी, स्कूल और स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है। कई परिवार अपनी आजीविका के साधन—खेती और जंगल—से वंचित हो गए, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बदतर हो गई। - आजीविका का संकट
आदिवासी समुदाय पारंपरिक रूप से खेती, मछली पकड़ने और जंगल से मिलने वाले संसाधनों (जैसे लकड़ी, जड़ी-बूटियां) पर निर्भर थे। बांध और पर्यटन परियोजनाओं के कारण नदी का प्राकृतिक बहाव प्रभावित हुआ, जिससे मछली पकड़ना मुश्किल हो गया। जंगलों तक पहुंच सीमित कर दी गई, और खेती की जमीनें डूब क्षेत्र में चली गईं। नई जगहों पर रोजगार के अवसर न के बराबर हैं, जिसके चलते बेरोजगारी और गरीबी बढ़ी है। - पर्यावरणीय प्रभाव
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण और पर्यटन विकास के लिए आसपास के क्षेत्र में वनस्पति और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचा है। हालांकि बड़े पैमाने पर जंगल कटाई का दावा स्पष्ट नहीं है, लेकिन साधु बेट (जहां स्टैच्यू स्थित है) और आसपास के इलाकों में कुछ हद तक हरियाली कम हुई है। इससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हुआ, जो आदिवासियों के जीवन का आधार था। नदी के किनारे बसे गांवों में बाढ़ का खतरा भी बढ़ गया है, खासकर जब बांध से पानी छोड़ा जाता है। - सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव
नर्मदा नदी को आदिवासी समुदाय “मां नर्मदा” के रूप में पूजते हैं और यह उनकी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। लेकिन बड़े पैमाने पर पर्यटन और औद्योगीकरण ने उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं को प्रभावित किया है। कई पवित्र स्थल डूब गए या पहुंच से बाहर हो गए। साथ ही, बाहरी लोगों की आवाजाही बढ़ने से सामाजिक तनाव भी पैदा हुआ है। - स्वास्थ्य और शिक्षा की कमी
विस्थापन के बाद कई गांवों में स्वास्थ्य केंद्र और स्कूल दूर हो गए हैं। बच्चों को पढ़ाई के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, और बीमारी के समय तत्काल चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं होती। कुपोषण और संक्रामक रोगों का खतरा भी बढ़ा है, क्योंकि स्वच्छ पानी और पोषण की कमी आम बात है। - विकास की असमानता
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को एक राष्ट्रीय गौरव और पर्यटन स्थल के रूप में प्रचारित किया जाता है, लेकिन इसके लाभ स्थानीय लोगों तक नहीं पहुंचते। पर्यटकों के लिए टेंट सिटी, फूलों की घाटी और अन्य सुविधाएं बनाई गईं, जबकि आसपास के गांव मूलभूत जरूरतों से वंचित हैं। यह असमानता लोगों में असंतोष और उपेक्षा की भावना को बढ़ाती है।
निष्कर्ष - नर्मदा नदी के पास स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के करीब रहने वाले लोगों की समस्याएं केवल जल संकट तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह विकास के नाम पर उनकी जमीन, आजीविका, संस्कृति और पहचान छीनने की कहानी है। सरकारी दावों के बावजूद, इन समुदायों के लिए नीतियां प्रभावी ढंग से लागू नहीं हुईं। यह स्थिति एक बड़े सवाल को जन्म देती है कि क्या विकास का मतलब कुछ लोगों को समृद्ध करना है, जबकि दूसरों को उनकी बुनियादी जरूरतों के लिए भी तरसाना है? इस क्षेत्र में सुधार के लिए पानी, पुनर्वास, रोजगार और पर्यावरण संरक्षण पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
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