

डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल (2004-2014) के दौरान विश्व बैंक से लिए गए ऋण को भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के संदर्भ में समझने के लिए हमें उस समय की जीडीपी और ऋण की राशि की तुलना करनी होगी। नीचे मैं इसे विस्तार से हिंदी में समझाता हूँ।
कुल ऋण का अनुमान
जैसा कि पिछले जवाब में बताया गया, मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में विश्व बैंक से अनुमानित 20-25 अरब अमेरिकी डॉलर ($20-25 billion) का ऋण लिया गया। इसे भारतीय रुपये में बदलने के लिए उस समय की औसत विनिमय दर (लगभग 50 रुपये प्रति डॉलर) के आधार पर यह राशि 1-1.25 लाख करोड़ रुपये के बीच थी।
भारत की जीडीपी (2004-2014)
डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान भारत की जीडीपी में तेजी से वृद्धि हुई। यहाँ साल-दर-साल की औसत जीडीपी का अनुमान दिया जा रहा है (अमेरिकी डॉलर में, विश्व बैंक और IMF डेटा के आधार पर):
2004-05:
709 बिलियन (लगभग 32 लाख करोड़ रुपये, 45 रुपये/
की दर पर)।
2009-10:
1,365 बिलियन (लगभग 65 लाख करोड़ रुपये, 48 रुपये/
की दर पर)।
2013-14:
1,857 बिलियन (लगभग 1.12 लाख करोड़ रुपये, 60 रुपये/
की दर पर)।
औसत जीडीपी: पूरे कार्यकाल में भारत की औसत जीडीपी लगभग $1,200-1,300 बिलियन (1.2-1.3 ट्रिलियन डॉलर) प्रति वर्ष रही।
10 साल की कुल जीडीपी को जोड़ें तो यह लगभग $12-13 ट्रिलियन (12,000-13,000 बिलियन डॉलर) के बीच होगी।
ऋण का जीडीपी में अनुपात
अब विश्व बैंक से लिए गए कुल ऋण ($20-25 बिलियन) को भारत की जीडीपी से तुलना करते हैं:
प्रति वर्ष औसत ऋण:
$20-25 बिलियन को 10 साल में बाँटें: $2-2.5 बिलियन प्रति वर्ष।
औसत जीडीपी ($1,200 बिलियन) के संदर्भ में यह प्रति वर्ष 0.16%-0.21% के बीच था।
यानी हर साल विश्व बैंक से लिया गया ऋण भारत की जीडीपी का 0.2% से भी कम हिस्सा था।
कुल ऋण बनाम कुल जीडीपी:
10 साल का कुल ऋण: $20-25 बिलियन।
10 साल की कुल जीडीपी: $12,000-13,000 बिलियन।
अनुपात: ($20-25 बिलियन / $12,000-13,000 बिलियन) × 100 = 0.15%-0.21%।
यानी पूरे कार्यकाल में विश्व बैंक का ऋण भारत की संचयी जीडीपी का 0.2% से भी कम हिस्सा था।
रुपये में तुलना
औसत वार्षिक जीडीपी: लगभग 60-70 लाख करोड़ रुपये (विनिमय दर के आधार पर)।
औसत वार्षिक ऋण: 10,000-12,500 करोड़ रुपये (
2-2.5 बिलियन × 50 रुपये/
)।
अनुपात: (10,000-12,500 करोड़ / 60-70 लाख करोड़) × 100 = 0.14%-0.2%।
कुल ऋण बनाम कुल जीडीपी: 1-1.25 लाख करोड़ रुपये का ऋण, 10 साल की जीडीपी (लगभग 600-700 लाख करोड़ रुपये) का 0.14%-0.2%।
निष्कर्ष
डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में विश्व बैंक से लिया गया ऋण भारत की जीडीपी के मुकाबले बहुत छोटा था। यह हर साल की जीडीपी का 0.2% से भी कम और पूरे 10 साल की संचयी जीडीपी का 0.15%-0.21% था। इसका मतलब है कि यह ऋण आर्थिक रूप से भारत पर बड़ा बोझ नहीं था। यह मुख्य रूप से विकास परियोजनाओं (जैसे सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य) के लिए लिया गया, जिसने जीडीपी वृद्धि में योगदान दिया।
संदर्भ में समझें
भारत का कुल बाह्य ऋण (सभी स्रोतों से) 2014 में $446 बिलियन था, जो उस साल की जीडीपी ($1,857 बिलियन) का 24% था।
इसमें विश्व बैंक का हिस्सा ($20-25 बिलियन) केवल 5-6% था।
इसलिए, विश्व बैंक का ऋण जीडीपी के हिसाब से नगण्य था, लेकिन इसका उपयोग महत्वपूर्ण विकास कार्यों के लिए हुआ।
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल (2014 से 2025 तक) में भारत ने विश्व बैंक से कितना कर्ज लिया और इस दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कितनी वृद्धि हुई,
इसका विस्तृत विवरण नीचे दिया जा रहा है। चूंकि आज की तारीख 2 अप्रैल 2025 है, इसलिए मैं उपलब्ध डेटा और अनुमानों के आधार पर जानकारी प्रस्तुत करूंगा। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 2025 तक का पूरा डेटा अभी तक आधिकारिक रूप से उपलब्ध नहीं है, इसलिए कुछ आंकड़े अनुमानित हैं और नवीनतम रिपोर्ट्स पर आधारित हैं।
विश्व बैंक से लिया गया कर्ज (2014 से 2025 तक)
नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था। उनके कार्यकाल में भारत ने विश्व बैंक से विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए कर्ज लिया, जिसमें बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा, और कोविड-19 महामारी से निपटने जैसे क्षेत्र शामिल हैं। विश्व बैंक से लिया गया कर्ज आमतौर पर रियायती दरों पर होता है और इसे दीर्घकालिक विकास के लिए उपयोग किया जाता है।
वर्ष-दर-वर्ष अनुमानित कर्ज का विवरण:
2014-2015: जब मोदी सरकार सत्ता में आई, तो भारत का कुल बाहरी कर्ज (सभी स्रोतों से, जिसमें विश्व बैंक भी शामिल है) लगभग 446 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। इस वर्ष विश्व बैंक से लगभग 1-2 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया, जो मुख्य रूप से स्मार्ट सिटी परियोजनाओं और स्वच्छ भारत अभियान के लिए था।
2015-2016: इस वर्ष विश्व बैंक ने भारत को लगभग 2.5 बिलियन डॉलर का कर्ज प्रदान किया। इसमें सौर ऊर्जा परियोजनाओं (जैसे मध्य प्रदेश में सौर पार्क) और ग्रामीण विकास के लिए फंड शामिल थे।
2016-2017: लगभग 2-3 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया। यह राशि बुनियादी ढांचे (जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं) और कौशल विकास कार्यक्रमों के लिए उपयोग की गई।
2017-2018: विश्व बैंक से करीब 2.5 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया। इसमें स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र की परियोजनाएं शामिल थीं।
2018-2019: लगभग 2 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया, जो मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन से निपटने और शहरी विकास के लिए था।
2019-2020: इस वर्ष कोविड-19 महामारी की शुरुआत हुई। विश्व बैंक ने भारत को आपातकालीन सहायता के रूप में 1 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया, जो स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए था।
2020-2021: महामारी के दौरान विश्व बैंक से लगभग 2.5 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त कर्ज लिया गया। इसमें एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) क्षेत्र को सहायता और टीकाकरण अभियान शामिल थे।
2021-2022: लगभग 2-3 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया, जो आर्थिक सुधार और हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए था।
2022-2023: विश्व बैंक से करीब 2.5 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया। यह राशि ग्रामीण बुनियादी ढांचे और जल प्रबंधन के लिए उपयोग की गई।
2023-2024: अनुमानित 2-3 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया, जो डिजिटल इंडिया और सतत विकास परियोजनाओं के लिए था।
2024-2025 (अप्रैल 2025 तक): वर्तमान वित्त वर्ष के लिए अभी तक का डेटा अधूरा है, लेकिन अनुमान है कि 1-2 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया जा सकता है।
कुल कर्ज का अनुमान:
2014 से अप्रैल 2025 तक विश्व बैंक से लिया गया कुल कर्ज लगभग 20-25 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच हो सकता है। यह आंकड़ा भारत के कुल बाहरी कर्ज का एक छोटा हिस्सा है, क्योंकि भारत अपने कर्ज का अधिकांश हिस्सा घरेलू स्रोतों और अन्य बहुपक्षीय संस्थानों (जैसे एशियाई विकास बैंक) से लेता है। मार्च 2025 तक भारत का कुल बाहरी कर्ज (सभी स्रोतों से) अनुमानित रूप से 620-650 बिलियन डॉलर के बीच पहुंच गया है। इसमें विश्व बैंक का योगदान लगभग 3-4% है।
जीडीपी में वृद्धि (2014 से 2025 तक)
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में भारत की अर्थव्यवस्था ने महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की है, हालांकि कोविड-19 महामारी ने इस गति को कुछ समय के लिए प्रभावित किया था। नीचे वर्ष-दर-वर्ष जीडीपी का विवरण और उसकी वृद्धि दर दी जा रही है:
वर्ष-दर-वर्ष जीडीपी और वृद्धि दर:
2014-15: जीडीपी – 1.82 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 113 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – 7.4%।
यह यूपीए सरकार के अंतिम वर्षों की तुलना में सुधार था।
2015-16: जीडीपी – 2.1 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 130 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – 8.0%।
मेक इन इंडिया और बुनियादी ढांचे पर जोर से वृद्धि हुई।
2016-17: जीडीपी – 2.29 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 142 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – 8.2%।
नोटबंदी के बावजूद अर्थव्यवस्था मजबूत रही।
2017-18: जीडीपी – 2.65 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 165 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – 6.8%।
जीएसटी लागू होने से कुछ अस्थायी प्रभाव पड़ा।
2018-19: जीडीपी – 2.87 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 178 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – 6.1%।
वैश्विक मंदी के प्रभाव दिखे।
2019-20: जीडीपी – 2.83 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 175 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – 4.2%।
कोविड-19 के कारण वृद्धि दर में भारी गिरावट।
2020-21: जीडीपी – 2.67 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 165 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – (-7.3%)।
महामारी के कारण अर्थव्यवस्था सिकुड़ी।
2021-22: जीडीपी – 3.15 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 195 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – 8.7%।
मजबूत रिकवरी देखी गई।
2022-23: जीडीपी – 3.39 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 210 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – 7.2%।
स्थिर विकास जारी रहा।
2023-24: जीडीपी – 3.67 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 227 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – 8.2%।
भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल।
2024-25 (अनुमानित): जीडीपी – 3.9-4.0 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 240-250 लाख करोड़ रुपये), वृद्धि दर – 7-8%।
यह अनुमान नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षणों पर आधारित है।
कुल वृद्धि का सारांश:
2014 में भारत की जीडीपी 1.82 ट्रिलियन डॉलर थी, जो 2025 तक अनुमानित रूप से 3.9-4.0 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है।
इस दौरान जीडीपी में लगभग 114-120% की वृद्धि हुई, यानी दोगुने से अधिक।
भारत 2014 में 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और 2023 तक यह 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। मोदी ने 2025 तक इसे 5 ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य रखा था, जो अब 2027-28 तक संभव दिखता है।
कर्ज और जीडीपी का तुलनात्मक विश्लेषण
2014 में कर्ज-से-जीडीपी अनुपात: कुल बाहरी कर्ज 446 बिलियन डॉलर था, और जीडीपी 1.82 ट्रिलियन डॉलर। अनुपात = 24.5%।
2025 में कर्ज-से-जीडीपी अनुपात (अनुमानित): कुल बाहरी कर्ज 620-650 बिलियन डॉलर, और जीडीपी 3.9-4.0 ट्रिलियन डॉलर। अनुपात = 15.5-16.5%।
इसका मतलब है कि कर्ज का बोझ जीडीपी के अनुपात में कम हुआ है, जो अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है।
विश्व बैंक से लिया गया कर्ज कुल बाहरी कर्ज का छोटा हिस्सा है और यह विकास परियोजनाओं में निवेश के लिए उपयोगी रहा है।
निष्कर्ष
नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में विश्व बैंक से 20-25 बिलियन डॉलर का कर्ज लिया गया, जो भारत के कुल बाहरी कर्ज (620-650 बिलियन डॉलर) का लगभग 3-4% है। इस दौरान जीडीपी 1.82 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 3.9-4.0 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई, जो 114-120% की वृद्धि दर्शाती है। कर्ज-से-जीडीपी अनुपात में कमी आई, जो यह संकेत देता है कि कर्ज का उपयोग उत्पादक क्षेत्रों में किया गया और अर्थव्यवस्था मजबूत हुई।
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