





राजेश लक्ष्मण गावड़े
मुख्य संपादक (जन कल्याण टाइम)
घटना का विवरण:30 अप्रैल, 2025 को गोरेगाँव, मुम्बई में स्थित दादा साहेब फाल्के चित्रनगरी (फिल्म सिटी स्टूडियो) में भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहेब फाल्के की 155वीं जन्म जयंती के उपलक्ष्य में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया।
इस समारोह का आयोजन फिल्म सिटी स्टूडियो प्रबंधन द्वारा किया गया था, जिसमें दादा साहेब फाल्के के परिवार, फिल्म जगत की प्रमुख हस्तियाँ, महाराष्ट्र सरकार के प्रशासनिक अधिकारी, और देश के विभिन्न हिस्सों से आए लोग शामिल हुए।
इस अवसर पर दादा साहेब फाल्के के ग्रैंडसन चंद्रशेखर पुसलकर, उनकी पत्नी मृदुला पुसलकर, और दत्तक पुत्री नेहा बंदोपाध्याय अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ उपस्थित थे। सभी ने दादा साहेब फाल्के की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। समारोह में भारतीय फिल्म जगत से जुड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधि, बॉलीवुड की नामचीन हस्तियाँ, और अन्य राज्यों से आए लोग भी शामिल हुए, जिन्होंने दादा साहेब की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।
दादा साहेब फाल्के का जीवन और योगदान:
दादा साहेब फाल्के, जिनका वास्तविक नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था, का जन्म 30 अप्रैल, 1870 को महाराष्ट्र के त्रिम्बक, नासिक में एक मराठी परिवार में हुआ था। वे न केवल भारतीय सिनेमा के पितामह थे, बल्कि एक कुशल निर्देशक, निर्माता, और स्क्रीनराइटर भी थे। उन्होंने भारतीय सिनेमा की नींव रखी और इसे वैश्विक पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दादा साहेब फाल्के ने अपने 19 साल के करियर में 121 फिल्में बनाईं, जिनमें 26 शॉर्ट फिल्में शामिल थीं। उनकी पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ (1913) को भारतीय सिनेमा की पहली फीचर फिल्म माना जाता है। यह फिल्म न केवल हिंदी सिनेमा की शुरुआत थी, बल्कि इसने भारतीय दर्शकों को सिनेमा के जादू से परिचित कराया। उनकी आखिरी मूक फिल्म ‘सेतुबंधन’ और आखिरी फीचर फिल्म ‘गंगावतरण’ (1937) थी।
दादा साहेब फाल्के ने उस समय सिनेमा निर्माण की चुनौतियों का सामना करते हुए, सीमित संसाधनों के साथ अपने सपनों को साकार किया। उन्होंने अपनी पहली फिल्म केवल 20-25 हजार रुपये की लागत से बनाई थी, जो उस समय एक बड़ी उपलब्धि थी। आज भारतीय सिनेमा का वार्षिक कारोबार दो अरब रुपये से अधिक का है, और लाखों लोग इस उद्योग से जुड़े हैं। यह सब दादा साहेब फाल्के के दूरदर्शी नेतृत्व और कठिन परिश्रम का परिणाम है।
दादा साहेब फाल्के का सम्मान:
दादा साहेब फाल्के के योगदान को सम्मानित करने के लिए भारत सरकार ने 1969 में ‘दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड’ की शुरुआत की। यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जो फिल्म उद्योग में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। इस पुरस्कार की पहली प्राप्तकर्ता थीं देविका रानी चौधरी। इसके अलावा, 1971 में भारतीय डाक विभाग ने दादा साहेब फाल्के के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया।
उनका निधन और विरासत:
दादा साहेब फाल्के का निधन 16 फरवरी, 1944 को नासिक में हुआ। भले ही वे आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत भारतीय सिनेमा में जीवंत है। उनके संघर्ष, समर्पण, और सृजनात्मकता के निशान आज भी फिल्मकारों को प्रेरित करते हैं। दादा साहेब फाल्के ने न केवल सिनेमा को एक कला के रूप में स्थापित किया, बल्कि भारतीय संस्कृति और कहानियों को विश्व पटल पर प्रस्तुत करने का मार्ग प्रशस्त किया।
समारोह का महत्व:
यह समारोह न केवल दादा साहेब फाल्के की जन्म जयंती का उत्सव था, बल्कि भारतीय सिनेमा के गौरवशाली इतिहास को याद करने का अवसर भी था। फिल्म सिटी स्टूडियो, जो दादा साहेब के नाम पर है, भारतीय सिनेमा के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है। इस समारोह में शामिल लोगों ने न केवल दादा साहेब को श्रद्धांजलि दी, बल्कि उनके सपनों को जीवित रखने का संकल्प भी लिया।
प्रेरणा और संदेश:
दादा साहेब फाल्के का जीवन और कार्य हमें सिखाता है कि सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों में भी दृढ़ संकल्प और मेहनत से बड़े सपने साकार किए जा सकते हैं। उनका संदेश आज भी भारतीय फिल्मकारों को धैर्य, समर्पण, और रचनात्मकता के साथ अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। उनकी विरासत युगों-युगों तक भारतीय सिनेमा को प्रेरणा देती रहेगी।
प्रस्तुति: काली दास पाण्डेय
यह लेख दादा साहेब फाल्के की 155वीं जन्म जयंती के अवसर पर उनके जीवन, योगदान, और भारतीय सिनेमा में उनके महत्व को विस्तार से दर्शाता है।



