यह दुनिया दो प्रकार के लोगों से भरी हुई है। पहले वे जिन्हें अपने समय का महत्व ही नहीं पता, जो नहीं जानते कि उनका समय कितना कीमती है और उसका सही उपयोग कैसे करना है। दूसरे वे लोग हैं जो अपने समय का हर पल पूरी तरह से उपयोग करते हैं और अलग-अलग जगहों पर अपना समय लगाते हैं। जैसे कि आप अपने समय को अपनी नौकरी, व्यापार, परिवार, दोस्तों और अन्य जीवन की चीजों में बांटते हैं। हम चाहे जितना भी समय बांट लें, हमारे जीवन में हमेशा कोई ना कोई ऐसा व्यक्ति होता है जिसे हम वह समय नहीं दे पाते जो उसे देना चाहिए। चाहे हम अपना समय बरबाद ही क्यों न कर दें, उस एक व्यक्ति के लिए समय नहीं निकाल पाते। लेकिन वह व्यक्ति हमेशा सोचता है कि आज नहीं तो कल हम उसे समय देंगे। यदि इस बात का अर्थ समझा जाए, तो वास्तविकता यह है कि जिसे हमें सबसे अधिक समय देना चाहिए, उसे हम अपने जीवन का कीमती समय कभी नहीं दे पाते हैं। हमारा ध्यान उस व्यक्ति पर तब जाता है जब हमारे जीवन में खराब समय आता है या जब हमारी मृत्यु करीब होती है। तो प्यारे दर्शकों, मैं फिर एक बार आपके लिए एक ऐसी कहानी लेकर आया हूं जिसके माध्यम से हम जानेंगे कि इंसान के जीवन में समय कितना कीमती होता है और हमें समय का उपयोग कैसे करना चाहिए। तो दोस्तों, आइए जानते हैं इस कहानी के माध्यम से।
बहुत वर्षों पहले की बात है, एक नगर में एक राजा था जो अत्यंत पराक्रमी, बलवान और शक्तिशाली था। उसने दुनिया के कई बड़े राज्यों को जीत लिया था। अपनी विजय का जश्न मनाते हुए, उसके महल में चारों ओर लोगों को भोजन कराया जा रहा था और धन बांटा जा रहा था। अन्य राज्यों के राजा भी उससे मिलने आए थे। राजा की प्रजा उसके लिए गीत गा रही थी और उसकी प्रशंसा कर रही थी। सभी लोग बहुत खुश थे और जश्न मना रहे थे। तभी एक अन्य राजा ने उस पराक्रमी राजा से पूछा, “हे राजन, आपने इतने कम समय में जो सफलता हासिल की है, उसका रहस्य क्या है? कई राजाओं ने इस सफलता की कल्पना की थी पर सभी असफल रहे। कईयों ने प्रयास किया पर कोई भी इतने कम समय में सफल नहीं हुआ। कृपया हमें बताएं, आपने यह कैसे हासिल किया?” इस पर वह पराक्रमी राजा ने उत्तर दिया, “यदि आप अपने जीवन में कुछ हासिल करना चाहते हैं, तो उसे पाने का सही समय होता है, और आपको उस समय को पहचानना आवश्यक है। जब आप उस समय को पहचान लेते हैं, तो उसी समय पर आपको कर्म करना होगा। यदि आप कर्म करने से चूक जाते हैं, या देरी कर देते हैं, तो वह चीज जो आप चाहते हैं, वह आपके हाथ से निकल जाती है। इसलिए, अपने जीवन में सभी को महत्व दें, सभी को समय दें। समय और कर्म हम मनुष्यों के जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं। जो व्यक्ति समय को समझता है, समय के अनुसार सही कर्म करता है, उसे निश्चित ही वह पल मिलेगा जिसकी वह कामना करता है। जैसे मैंने यह सब कुछ पाया, वह भी इतने कम समय में, और आगे भी मैं इसी तरह से सफलताएं हासिल करता रहूंगा।”
राजा के उत्तर को सुनकर वहां मौजूद सभी राजा और दरबारी बहुत प्रसन्न हुए, और सभी ने राजा की बहुत प्रशंसा की। उन्होंने राजा के विचारों का स्वागत भी किया। लेकिन उस दरबार में एक वृद्ध सन्यासी भी था, जो राजा के शब्दों को सुनकर जोर से हंसने लगा। वह इतना जोर से हंस रहा था कि हंसते-हंसते उसका पेट फूल गया और वह वहीं गिर पड़ा। वहां मौजूद कुछ सैनिकों ने उसे उठाया और पकड़ लिया। कुछ अधिकारियों ने राजा से कहा कि यह वृद्ध सन्यासी आपका अपमान कर रहा है, इसलिए अगर आप आज्ञा दें तो इसे मृत्युदंड दिया जा सकता है। राजा ने अधिकारियों की बात सुनी, पहले तो वह चुपचाप उस वृद्ध सन्यासी को देखते रहे, फिर उसे देखकर उनके मन में दया जाग उठी क्योंकि वह एक बड़ा सन्यासी था और उसकी हालत भी ठीक नहीं लग रही थी। राजा को लगा कि शायद वृद्ध सन्यासी को उनकी बात समझ में नहीं आई और इसीलिए वह हंस पड़ा। राजा ने उस वृद्ध सन्यासी से कहा, “हे मुनिवर, लगता है आपको मेरी बात समझ नहीं आई, इसीलिए आप जोर-जोर से हंस रहे थे।” राजा की इस बात को सुनकर वह वृद्ध सन्यासी फिर से हंसने लगा और हंसते-हंसते एक बार फिर वहीं जमीन पर गिर पड़ा। उसकी हंसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी और उसे हंसते देख दरबार के कुछ अन्य लोग भी जोर-जोर से हंसने लगे।
राजा के मन में यह सब देखकर क्रोध उत्पन्न होने लगा, और उसने बूढ़े सन्यासी से कहा, “हे मुनिवर, आपको क्या लगता है? क्या हमने जो कहा, वह गलत है? क्या हमारी बातें हंसी के योग्य हैं?” राजा की बातें सुनकर, बूढ़ा सन्यासी बोला, “हे राजन, नहीं, मेरा मतलब वह नहीं था। आपने जो कहा, वह बिल्कुल सही है। सही समय पर सही कर्म करना ही हमें सफलता की ओर ले जाता है। जो कर्म और समय के बंधन को समझ जाता है, वही अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। लेकिन मुझे हंसी इस बात पर आ रही है कि आपने कहा आपका समय सभी का हक है और आप सभी को समय देते हैं, जो कि गलत है।” इस पर राजा ने सन्यासी से पूछा, “हे मुनिवर, आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं सभी को समय नहीं देता?” तब सन्यासी ने उत्तर दिया, “हे राजन, एक ऐसा बेचारा भी है, जिसके लिए आपके पास समय नहीं है, जिसे आपके समय की सबसे अधिक आवश्यकता है।”
आपने अब तक उसके लिए कोई कर्म नहीं किया और न ही उसे अपना समय दिया है, इसलिए वह आपको कभी प्राप्त नहीं होगा। यह सुनकर राजा और भी अधिक क्रोधित हो गए। राजा ने उस वृद्ध सन्यासी से कहा, “मुनिवर, आप मुझे बताएं वह कौन है, मैं उसे निश्चित ही अपना समय दूंगा और उसे जानने और समझने का प्रयास करूंगा।” इस पर वह वृद्ध सन्यासी जोर से हंसने लगे और बोले, “हे राजन, मेरा काम था आपको जागृत करना, जो मैंने कर दिया। अब आप स्वयं ही उसे खोजिए कि आखिर वह कौन है। मैं फिर मिलूंगा जब तक आप यह पता लगा लीजिए कि आखिर ऐसा कौन है, जिसे आपने अब तक समय नहीं दिया।” यह कहकर वह वृद्ध सन्यासी राज दरबार से हंसते हुए चले गए।
राजा के दिल को उस वृद्ध सन्यासी की बातें छू गईं, और वह गहन चिंतन में डूब गया। बहुत सोचने पर भी उसे यह समझ नहीं आया कि आखिर वह कौन है जो उसके इतना करीब है, फिर भी राजा ने कभी उसे समय नहीं दिया। जब कोई समाधान नहीं सूझा, तो उसने अपने सेनापति को आदेश दिया कि वह पूरे राज्य में जाकर पता लगाए कि ऐसा कौन है जिसे उसने अब तक समय नहीं दिया। सेनापति और उनकी सेना ने राजा के आदेश का पालन किया और खोज शुरू की। कई दिन बीत गए, लेकिन उन्हें अभी तक वह व्यक्ति नहीं मिला जिसे राजा ने समय नहीं दिया था। राजा खुद से सोच रहा था कि उसने तो हमेशा सभी को समय दिया है – अपने दरबारियों को, अपनी प्रजा को, अपने परिवार को, यहां तक कि अपने शत्रुओं को भी। तो फिर वह कौन है जिसे उसने समय नहीं दिया? इसी सोच में डूबा राजा बहुत चिंतित हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह कौन है जिसके लिए उसने अब तक कोई काम नहीं किया और न ही समय दिया। दिन बीतते गए, और राजा को लगने लगा कि शायद वह वृद्ध सन्यासी उसके साथ मजाक करके चला गया था, और इसी सोच में उसे बहुत क्रोध आने लगा।
राजा ने अपने सेनापति को आज्ञा दी कि वे जाकर उस बूढ़े सन्यासी को ढूंढें और लाएं, चाहे वह कहीं भी हों। उन्होंने कहा कि उन्हें वह सन्यासी हर हाल में और किसी भी कीमत पर चाहिए। सेना ने राजा की आज्ञा का पालन करते हुए पूरे राज्य को खंगाला, परंतु उन्हें वह सन्यासी कहीं नहीं मिला। अंत में, हार मानकर सेना राजा के पास लौटी, उन्होंने राजा से क्षमा याचना की और कहा कि उन्होंने पूरी कोशिश की, पूरे राज्य को छान मारा, लेकिन वह बूढ़ा सन्यासी उन्हें कहीं नहीं मिला। इसलिए वे क्षमा चाहते हैं। राजा ने सेनापति की बात अनसुनी कर दी, क्योंकि उन्हें लगा कि वह सन्यासी उनके ही राज्य में है। इसी कारण वह स्वयं उस सन्यासी को ढूंढने निकल पड़े। कई दिनों तक इधर-उधर भटकने के बाद, राजा को पता चला कि वह बूढ़ा सन्यासी पास के ही एक गांव में प्रवचन देने आ रहा है।
राजा भी उसी गांव में पहुँच गया जहाँ वह बूढ़ा सन्यासी प्रवचन दे रहा था। गांववाले उसके चारों ओर भीड़ लगाकर बैठे थे। राजा ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए अपना वेश बदला और भीड़ में शामिल हो गया। वह जानना चाहता था कि क्या इस बूढ़े सन्यासी में वास्तव में ज्ञान है या उसने राजा के सामने केवल मजाक किया था। बूढ़ा सन्यासी कुछ कह रहा था, परंतु गांववालों की भीड़ इतनी अधिक थी कि वे आपस में ही बातचीत में लीन थे और उन्हें सन्यासी की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। यह देखकर बूढ़ा सन्यासी बिना कुछ कहे या सुने वहाँ से चला गया। हालांकि, भीड़ के सबसे आगे बैठे लोगों को उसकी आवाज़ सुनाई दे रही थी और वे उसकी बातें समझ भी रहे थे। लेकिन जब सन्यासी ने देखा कि बाकी गांववाले अपनी बातों में लगे हुए हैं, तो वह चला गया।
जब सभी एक दूसरे से बातचीत में व्यस्त थे, वह बूढ़ा सन्यासी वहां से उठकर जाने लगा। परंतु जिन लोगों ने उस बूढ़े सन्यासी की बातें सुनी और समझी थी, वे उसे रोकने लगे और कहने लगे, “गुरुजी, आप कहाँ जा रहे हैं? आपने तो अभी तक हमें कुछ भी नहीं बताया। आप इस तरह से चुपचाप क्यों जा रहे हैं? कृपया रुकिए।” वह बूढ़ा सन्यासी उन लोगों की बात मान लेता है और वापस अपने स्थान पर बैठ जाता है। फिर वह उनसे कहता है, “अगर तुम लोग इसी तरह से एक दूसरे की बातें सुनते और वार्तालाप करते रहोगे, तो मैं क्या, यदि भगवान भी तुम्हारे सामने आ जाएं, तो वे भी बिना कुछ कहे या सुने यहां से चले जाएंगे, और तुम उन्हें कभी नहीं सुन पाओगे, क्योंकि तुम लोग तो अपनी बातों में ही लगे हुए हो।”
तुम्हें तो केवल एक-दूसरे की बातों में मजा आ रहा है। तुम सभी अपनी-अपनी बातें सुनने और सुनाने में व्यस्त हो, और तुम जैसे लोग जिंदगी भर केवल यही करते रह जाएंगे। तुम्हें अपना जीवन ऐसे ही पसंद है, लेकिन जब तुम जैसे लोगों का अंतिम समय आता है, उस वक्त जब कोई तुम्हारी बातें नहीं सुनता, तब तुम्हें भीतर ही भीतर पीड़ा होती है, तकलीफ होती है। उस वक्त तुम लोग रोते हो, चिल्लाते हो, चीखते हो कि कोई भी तुम्हारी बात नहीं सुन रहा है। ‘अब मैं क्या करूं?’ ये बात सुनकर वहां पर उपस्थित सभी गांववाले चुप हो गए और उस बूढ़े संन्यासी की बातें सुनने लगे। तभी वह बूढ़ा संन्यासी अचानक चुप हो गया और आगे कुछ नहीं कहा। कुछ देर तक सभी लोग एकदम खामोश रहे। तब उस भीड़ में से एक व्यक्ति ने कहा, ‘हे महाराज, आप कुछ बोलते क्यों नहीं? आप इस तरह से चुप क्यों बैठे हो?’ तभी वह बूढ़ा संन्यासी उन सभी से कहता है, ‘बोलो मत, सिर्फ सुनो। ध्यान लगाकर सुनो।’ इतना कहकर वह बूढ़ा संन्यासी फिर से चुपचाप बैठ गया और सभी लोग उसके बोलने का इंतजार करने लगे। कुछ देर तक ऐसे ही खामोशी छाई रही। चारों तरफ बिल्कुल सन्नाटा था। कुछ देर इंतजार करने के बाद, उस भीड़ में से एक व्यक्ति उठा और उसने उस बूढ़े संन्यासी से कहा, ‘हे महाराज, आखिर क्या बात है? आप हमसे कुछ बताते क्यों नहीं? आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो? क्या आप हमारी हरकतों से नाराज़ हो?’ तभी वह बूढ़ा संन्यासी जोर से चिल्लाकर कहता है, ‘अरे मूर्ख, चुप रह! जब तू चुप नहीं बैठेगा, तो तुझे सुनाई कैसे देगा?’
इसीलिए चुपचाप बैठ जाओ और ध्यान से सुनने का प्रयास करो। सभी लोग एक बार फिर से चुपचाप बैठ गए। सभी लोग कुछ सुनने का प्रयास कर रहे थे, चारों तरफ एकदम सन्नाटा था, किसी की भी कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। काफी देर तक यह स्थिति बनी रही, पर गुरु की इस हरकत को देखकर गांव वालों ने आपस में फिर से बातें करनी शुरू कर दी। यह देखकर वह बूढ़ा सन्यासी फिर से कहने लगा, “तुम लोगों की समस्या यह है कि तुम कभी शांत नहीं रहना चाहते। तुम हमेशा कुछ न कुछ कहना चाहते हो, बताना चाहते हो, बोलना चाहते हो, कुछ न कुछ करते रहना चाहते हो। लेकिन कभी भी शांत नहीं होना चाहते, कहीं पर रुकना नहीं चाहते, कुछ सुनना नहीं चाहते। बस कुछ भी करना है, तो वह है बोलना। बोलते रहो, बोलते रहो। लेकिन क्या तुमने कभी सोचा है कि तुम क्या बोल रहे हो? इतने सारे विचार, इतने सारे शब्द, इतनी सारी सोच, आखिर ये सब आ कहां से रही है? इस बारे में कभी एक पल भी रुककर विचार किया है? जो शब्द तुम कह रहे हो, ये जो बातें तुम एक दूसरे को सुना रहे हो, इसके पीछे तुमने किसी आवाज को दबा रखा है। कभी उसके बारे में विचार किया है?” ये सब देखकर गांव वाले बड़े आश्चर्यचकित थे और राजा को भी यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर यह बूढ़ा सन्यासी कहना क्या चाहता है। तभी अंत में क्रोधित होकर राजा खड़ा हुआ और उसने उस बूढ़े सन्यासी से कहा, “हे मुनिवर, यदि आप कुछ कहेंगे ही नहीं, तो हम भला क्या सुनेंगे? आप जब से बैठे हैं, तब से तो आपने कुछ कहा ही नहीं। केवल यह कह रहे हैं कि ध्यान से सुनो, ध्यान से सुनो। लेकिन अभी तक आपने तो कुछ कहा ही नहीं। जब भी आपसे कोई कुछ भी कहने के लिए कहता है, तब आप बिल्कुल चुपचाप बैठ जाते हैं और कहते हैं सुनो, ध्यान से सुनो, ध्यान लगाकर सुनो। आखिर हमें क्या सुनना है, जब आप कुछ कहेंगे ही नहीं तो हमें सुनाई क्या देगा?” वह बूढ़ा सन्यासी जोर से हंस पड़ा और उसने राजा को पहचान लिया था।
उसने कहा, “हे राजन, आप कैसे सुन पाएंगे जब आपके सबसे करीबी को आपकी सबसे अधिक आवश्यकता है, जिसे आपने अभी तक कोई समय नहीं दिया? तो आप कैसे सुनेंगे?” तभी वह राजा बड़े ही आश्चर्य से उस बूढ़े सन्यासी से कहता है, “आपने मुझे कैसे पहचाना? मैं तो यहां भेष बदलकर आया हूँ।” तब वह बूढ़ा सन्यासी राजा से कहता है, “हे राजन, यहां बैठे सभी अकड़े व्यक्तियों में से आप में सबसे अधिक अकड़ है, इसलिए आपको पहचानना उतना ही आसान है।” आगे राजा उस बूढ़े सन्यासी से कहता है, “खैर, वह सब ठीक है, लेकिन आपने मुझे वह नहीं बताया कि मेरा करीबी कौन है, जिसे मुझे समय देना चाहिए था और मैंने अभी तक समय नहीं दिया। कहीं आप मुझसे मजाक तो नहीं कर रहे? क्योंकि मैंने अपने सेनापति से पूरी छानबीन करवाई है, लेकिन अभी तक मुझे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसे मैंने अभी तक अपना समय नहीं दिया हो। यदि आपने मेरे साथ कोई मजाक किया था, तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा। इसके लिए आपको मृत्युदंड दूंगा।” वह बूढ़ा सन्यासी जोर-जोर से हंसने लगा और वहीं पर फिर से एक बार गिर पड़ा और राजा से कहने लगा, “हे राजन, मृत्युदंड तो ठीक है, वह तो आप मुझे बाद में दे देना, लेकिन उस व्यक्ति से तो मिलो जो आपके लिए तड़प रहा है, जो आपका समय पाना चाहता है, जिसे आपने अभी तक बिल्कुल भी समय नहीं दिया।” इस पर राजा उस बूढ़े सन्यासी से कहता है, “हाँ, हाँ, बताओ वह कौन है? मैं यहां पर वही जानने आया हूँ।”
तभी वह बूढ़ा सन्यासी राजा से कहता है, “हे राजन, यदि तुम्हें यह जानना है, तो इसके लिए तुम्हें मेरे साथ एकांत में चलना होगा।” राजा उस बूढ़े सन्यासी से कहता है, “हां, हां, मैं तुम्हारे साथ अवश्य चलूंगा, क्योंकि मुझे यह जानना अनिवार्य है कि आखिर वह कौन व्यक्ति है, जिससे मैंने अभी तक अपना कीमती समय नहीं दिया।” मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूँ।” इतना कहकर वह बूढ़ा सन्यासी और राजा दोनों एक जंगल में चले जाते हैं, जो बिल्कुल वीरान था और जहां पर किसी का आना-जाना नहीं था। वह बूढ़ा सन्यासी राजा को एक तालाब के पास ले जाता है और कहता है, “हे राजन, जिसे तुम ढूंढ रहे हो, वह तुम्हारे सबसे करीब है और वह तुम्हें इसी तालाब में मिलेगा।” राजा बूढ़े सन्यासी की बात मानकर तालाब की ओर आगे बढ़ता है। जब वह तालाब में झांकता है, तो उसे कुछ भी नजर नहीं आता। यह देखकर राजा और भी क्रोधित हो जाता है और उस बूढ़े सन्यासी से कहता है, “लगता है तुम मुझे फिर से मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हो।”
उस बूढ़े सन्यासी ने कहा, “नहीं राजन, ध्यान से देखो, तुम्हें कुछ आवश्यक दिखाई देगा। वह तुम्हारा सबसे करीबी इसी तालाब में मिलेगा।” राजा ने सन्यासी की बात मानी और तालाब की ओर बढ़ा। तालाब में ध्यान से देखते हुए, उसे केवल अपनी परछाई नजर आई। इस पर सन्यासी ने कहा, “राजन, तुम्हें तुम्हारा करीबी मिल गया। यही वह व्यक्ति है जिसे तुमने अभी तक समय नहीं दिया, जिसके लिए तुमने कोई कर्म नहीं किया, और जिसे तुम्हारे समय की सबसे ज्यादा जरूरत है।” राजा ने विचार किया और सन्यासी से कहा, “मुनिवर, आप सही कहते हैं। हम सभी के लिए समय निकालते हैं, पर अपने लिए नहीं।” फिर राजा ने पूछा, “हम अपने आप को कैसे सुन सकते हैं, अपने लिए समय कैसे निकाल सकते हैं?”
राजा की बात सुनकर वह बूढ़ा संन्यासी फिर से जोर से हंसने लगा और राजा से बोला, “चुप हो जाओ, मौन रहो, शांत बनो, आंखें बंद करो, अपनी बकवास बंद करो और यहीं पर बैठ जाओ। अपने ऊपर ध्यान लगाओ, अपने आप पर ध्यान दो। तभी तुम खुद को सुन पाओगे और खुद को समय दे पाओगे। अन्यथा तुम्हारा जीवन इसी तरह व्यर्थ में ही बीत जाएगा, और तुम कभी खुद को न तो देख पाओगे और न ही सुन पाओगे। और जब तुम्हारा अंतिम समय आएगा, तब तुम्हें एहसास होगा कि तुमने अपने लिए समय ही नहीं निकाला, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।”
जब आपके पास खुद को समय देने का समय नहीं होगा, तब आप खुद को कैसे सुन पाएंगे? जैसा कि आप कहते हैं, सही समय पर सही कार्य करना चाहिए, तो यही वह समय है। यह सही समय है जब हम खुद को देख सकते हैं, सुन सकते हैं, पहचान सकते हैं, और समझ सकते हैं। हम खुद को उन कर्मों से भी बचा सकते हैं जो हमें विनाश की ओर ले जा सकते हैं। इस बूढ़े सन्यासी की बातें सुनकर, राजा तुरंत उनके चरणों में गिर पड़ा और कहने लगा, “हे मुनिवर, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने मुझे मेरे आप से मिलवाया है। अन्यथा, मैं अपना जीवन व्यर्थ ही गवां देता। मैं खुद को कभी समय नहीं दे पाता, न ही समझ पाता, न ही सुन पाता।” राजा की ये बातें सुनकर, वह बूढ़ा सन्यासी जोर से हंसने लगा, हंसते-हंसते तालाब में गिर पड़ा और राजा से कहने लगा, “तुम तो बहुत गंभीर हो गए। यह जीवन गंभीरता के लिए नहीं, बल्कि हंसने और हंसाने के लिए है। खुशियां बांटने और सुख बांटने के लिए है। इसलिए खुद को पहचानो, खुद को जानो, खुद को समय दो और दूसरों में खुशियां बांटो।”
इस प्रकार कहकर वह वृद्ध सन्यासी ने राजा को जीवन जीने की शिक्षा दी, और प्रिय साथियों, हमें भी राजा और वृद्ध सन्यासी की इस कहानी से सीख लेनी चाहिए। अन्यथा हमें भी राजा की भांति एक मार्गदर्शक की आवश्यकता होगी ताकि हम अपने जीवन को सुधार सकें। इसलिए, साथियों, इस कहानी से हमें बहुत कुछ सीखने की जरूरत है, और हमें लोगों में प्रेम और खुशियाँ बाँटने की जरूरत है, साथ ही हमें अपने ऊपर और अपने धन पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। चाहे आप कितने भी धनी हों या ज्ञानी हों, अपने धन और ज्ञान का सही उपयोग करना ही मानवता का धर्म है। इसलिए, प्रिय साथियों, मैं आशा करता हूँ कि इस कहानी से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलेगा, और अगर हम वास्तव में अपने जीवन में सुधार करना चाहते हैं, तो हमारे जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी और प्रेम ही प्रेम होगा।
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