राजेश गावड़े, संपादक, जेकेटी
मुंबई/नवसारी। दस दिनों तक विधि-विधान से पूजा करने के बाद रविवार को यहां के कृत्रिम तालाबों और सागर में गणेश विसर्जन किया गया। विसर्जन के बाद जिस प्रकार भगवान गणेश की मूर्तियों की दुर्दशा दिखाई दी, इससे यही लगता है कि मूर्तियां स्थापित कर घर में विसर्जित की गईं होती, तो यह स्थिति नहीं होती। कई जगह गणेश की मूर्तियों को जेसीबी और क्रेन से तोड़ा गया। एक जेसीबी ड्राइवर ने बताया कि हमारी भावनाएं भी आहत होती हैं, लोग घर में विसर्जन नहीं करते हैं। इससे हमारा काम बढ़ जाता है। शहर से कचरा हटाने का काम पूरी तरह से ठप हो जाता है। लोगों को समझना होगा। मूर्तियों को इस प्रकार डंपर में भरकर डंपिंग साइट पर डालना हमें भी अच्छा नहीं लगता है, पर क्या करें? यह तो नौकरी है।
सात दिन तक प्यारा दरबार सजाया, रात-दिन सिर-माथा नवाया, दिल में बैठाया और अगले बरस तू जल्दी आ का जयकारा लगाकर विदा किया। पर, अब ये हाल। गणपति की प्रतिमाओं का विसर्जन के बाद ये बुरा हाल देखना कितना दुखदायी है।
गणेश पूजा पंडाल सजाने वाले हजारों लोग अब क्या कहेंगे। क्या करोड़ों लोगों की धर्म-आस्था से जुड़े इस विसर्जन को सुखदायी नहीं बनाया जा सकता। क्या किया जाए जो ऐसा न हो। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। हर साल भक्त श्रृद्धा भाव से गणपति को घर लाते हैं अथवा पंडाल में विराजमान करते हैं। विधि-विधान से पूजन करते हैं। गणपति का मनमोहक भोग लगाते हैं। फिर महोत्सव खत्म होते ही पंडाल से गणपति के विसर्जन की जोरदार तैयारियां करते हैं। विसर्जन के बाद घाटों पर जो दृश्य देखने को मिलता है वह किसी अपराध से कम नहीं है। कूड़े के ढेर में पड़ी गणपति की मूर्ति मन को विचलित कर जाती है। इस अपराध से बचने के लिए जरूरी है कि प्रतिमाएं छोटी रखी जाएं, जल में जल्द घुलनशील तत्वों से बनाई जाएं या भूविसर्जन किया जाए या कुछ और। कुछ भी हो पर उपाय सोचिए वरना कह दीजिए गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू मत आ।