ढाका: बांग्लादेश में लगभग दो सप्ताह से चल रहे हिंसक प्रदर्शन में अब एक नया मोड़ आ गया है जहां हिंसक प्रदर्शनों के बीच बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को सरकारी नौकरियों में कोटा व्यवस्था को बरकरार रखने के हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। हालांकि, शीर्ष अदालत ने इस आरक्षण व्यवस्था को पूरी तरह खत्म नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने हिसंक प्रदर्शन पर हाईकोर्ट के आदेश को अवैध बताया है। जिसके बारे में अटॉर्नी जनरल एएम अमीनुद्दीन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने कोटा व्यवस्था को बरकरार रखने के हाईकोर्ट के आदेश को अवैध माना है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
इसके साथ ही अरॉर्नी जनरल ने कहा कि शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में सरकारी नौकरियों में 93 फीसदी पदों को योग्यता के आधार पर भरने का आदेश दिया, जबकि 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों और अन्य श्रेणियों के लिए सिर्फ 7 फीसदी पद आरक्षित करने को कहा।
बांग्लादेश में कैसा है आरक्षण का प्रावधान
जानकारी के लिए बता दें कि बांग्लादेश में फिलहाल लागू कोटा व्यवस्था के तहत 56 फीसदी सरकारी नौकरियां आरक्षित थीं। इनमें से 30 फीसदी 1971 के मुक्ति संग्राम के सेनानियों के वंशजों के लिए, 10 फीसदी पिछड़े प्रशासनिक जिलों के लिए, 10 फीसदी महिलाओं के लिए, 5 फीसदी जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लिए और 1 फीसदी विकलांग लोगों के लिए आरक्षित थे। स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को दिए गए 30 फीसदी आरक्षण के खिलाफ छात्र आंदोलन कर रहे हैं। आपको बता दें कि हर साल बांग्लादेश में करीब 3 हजार सरकारी नौकरियां निकलती हैं, जिसके लिए करीब 4 लाख उम्मीदवार आवेदन करते हैं।
2018 में भी हुआ था आंदोलन
इसके साथ ही आपको बता दें कि इससे पहले साल 2018 में इसी कोटा सिस्टम के खिलाफ बांग्लादेश में हिंसक छात्र आंदोलन हुआ था। तब शेख हसीना सरकार ने कोटा सिस्टम को निलंबित करने का फैसला किया था। मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों ने सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने पिछले महीने शेख हसीना सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था और कोटा सिस्टम को बरकरार रखने का फैसला सुनाया था। कोर्ट के इस फैसले के बाद पूरे बांग्लादेश में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
133 लोगों ने गवाई जान
मिली जानकारी के लिए बता दें कि दो सप्ताह से बांग्लादेश में चल रहे विरोध प्रदर्शनों में अब तक 133 लोगों की मौत हो चुकी है और 3000 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं। 14 जुलाई को प्रधानमंत्री शेख हसीना के आवास पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब उनसे छात्रों के विरोध के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया, ‘अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को (कोटा का) लाभ नहीं मिलेगा, तो क्या रजाकारों के पोते-पोतियों को मिलेगा?’ प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस बयान के बाद प्रदर्शनकारी छात्र और ज़्यादा आक्रामक हो गए, जिससे पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति और बढ़ गई। जवाब में उन्होंने ‘तुई के? अमी के? रजाकार, रजाकार! (तुम कौन हो? मैं कौन हूँ? रजाकार, रजाकार!)’ के नारे लगाने शुरू कर दिए।