Goa Willing LIVE: गोवा देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां लिविंग विल लागू हो गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एम एस सोनक ने कार्यक्रम के दौरान ‘जीवन के अंत में देखभाल की वसीयत’, जिसे लिविंग विल भी कहा जाता है। इसके साथ ही एम एस सोनक लिविंग विल को लागू करने वाले पहले जज बन गए हैं। जस्टिस सोनक ने भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) की गोवा शाखा और गोवा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (जीएसएलएसए) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि यह एक महत्वपूर्ण अवसर है। हम सभी अपने जीवन जीने में बहुत व्यस्त हैं, और इससे हमें जीवन के अंत के मुद्दों पर विचार करने के लिए मुश्किल से ही समय मिलता है… जो अपरिहार्य हैं, और जिनके लिए हमें थोड़ी पहले से ही तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।
2018 में वैध हुई थी इच्छा मृत्यु
बता दें कि देश की सर्वोच्च अदालत ने 2018 में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध कर दिया था, बशर्ते व्यक्ति के पास “लिविंग विल” हो, या एक लिखित दस्तावेज़ हो, जिसमें यह निर्दिष्ट हो कि यदि व्यक्ति भविष्य में अपने स्वयं के चिकित्सा निर्णय लेने में असमर्थ है तो उसे क्या कार्रवाई करनी है। सर्वोच्च न्यायालय ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी थी, जबकि लाइलाज रूप से बीमार रोगियों की लिविंग विल को मान्यता दी थी, जो स्थायी रूप से वानस्पतिक अवस्था में जा सकते थे और प्रक्रिया को विनियमित करने वाले दिशानिर्देश जारी किए थे। इसके बाद 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने लिविंग विल के लिए कुछ मौजूदा दिशानिर्देशों को बदलकर निष्क्रिय इच्छामृत्यु की प्रक्रिया को आसान बना दिया। जस्टिस सोनक ने कहा कि गोवा पहला राज्य है जिसने कुछ हद तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के कार्यान्वयन को औपचारिक रूप दे दिया है। यह एक शुरुआत और कुछ शुरुआती मुद्दे होंगे, जिन्हें दूर किया जाएगा।
हाईकोर्ट के जस्टिस ने कहा है कि सही दिशा में पहला कदम उठाया गया है। इस अवसर पर अग्रिम चिकित्सा निर्देशों पर एक पुस्तिका भी जारी की गई है।
अधिकारियों ने बताया कि गोवा अग्रिम चिकित्सा निर्देशों को लागू करने और संचालन करने वाला पहला राज्य है। दिशा-निर्देशों के अनुसार जो व्यक्ति अपनी वसीयत बनाना चाहता है, उसे दो गवाहों की मौजूदगी में संदर्भ प्रारूप के अनुसार इसे तैयार करना होगा। गोवा मेडिकल काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष और कैंसर सर्जन डॉ. शेखर साल्कर ने कहा है कि आज का दिन मेरे लिए भावनात्मक दिन है। मेरे पिता का निधन मार्च 2007 में हुआ था। उन्हें दो बार वेंटिलेटर पर रखा गया था। अपने पिता को लेकर उन्होंने कहा कि जब उन्हें तीसरी बार वेंटिलेटर पर रखा जाने वाला था, तो मुझे लगा कि इससे उन्हें कोई फ़ायदा नहीं होगा। मुझे कोई फ़ैसला लेना था। इसलिए, मैंने अपने भाई-बहनों से सलाह ली और उन्हें समझाया कि उन्हें घर ले जाना बेहतर होगा। मुझे लगता है कि उस समय मैं यही सबसे अच्छा फ़ैसला ले सकता था।