7 साल बाद जेल से रिहा हुए पूर्व प्रोफेसर GN साईबाबा, बोले- इलाज के बाद कर सकूंगा बात

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दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा (GN Saibaba) आखिरकार आज (7 मार्च) नागपुर सेंट्रल जेल से रिहा हो गए। बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High) ने कथित माओवादी संबंधों के आरोप में उम्र कैद की सजा काट रहे साईबाबा को मंगलवार को बरी कर दिया था। 54 वर्षीय साईबाबा और पांच अन्य को 2017 में एक सत्र अदालत ने दोषी ठहराया था।
जीएन साईबाबा को कथित माओवादी लिंक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा बरी किए जाने के दो दिन बाद आज सुबह नागपुर सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया। सुबह से ही जेल के बाहर परिवार के सदस्य उनका इंतजार कर रहे थे।
व्हीलचेयर पर बैठे साईबाबा ने नागपुर जेल से बाहर आने के बाद मीडिया से कहा, “मेरी तबीयत बहुत खराब है। मैं बात नहीं कर सकता हूँ। मुझे पहले मेडिकल ट्रीटमेंट लेना होगा और उसके बाद ही मैं बोल पाऊंगा।”
जेल में बीते 10 साल!
मार्च 2017 में गढ़चिरौली की एक सत्र अदालत ने साईबाबा, एक पत्रकार और एक जेएनयू छात्र सहित कुल छह लोगों को कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए यूएपीए के तहत दोषी ठहराया था।
गढ़चिरौली जिले की एक निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद साईबाबा 2017 से नागपुर की जेल में बंद थे। इससे पहले, वह 2014 से 2016 तक इस मामले में जेल में थे और उन्हें फिर कुछ महीनों के लिए जमानत मिल गई थी।
सरकार ने रिहाई को SC में दी चुनौती
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने मंगलवार (5 मार्च) को कथित माओवादी लिंक मामले में साईबाबा की आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन उनके खिलाफ आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा है। इसलिए उन्हें सुनाई गई उम्र कैद की सजा भी रद्द की जाती है। इस मामले के पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया गया। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने पूर्व प्रोफेसर साईबाबा को बरी करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
कौन है GN साईबाबा?
साईबाबा को प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) से संबंध रखने के मामले में 2014 में महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उनकी पत्नी वसंता कुमारी के मुताबिक, साईबाबा ह्रदय और किडनी रोग समेत कई अन्य रोगों से ग्रस्त हैं। साईबाबा 90 फीसदी विकलांग हैं और व्हीलचेयर पर चलते हैं। माओवादियों से कथित संबंध के चलते उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज (Ram Lal Anand College) ने सहायक प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया था।

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