Ram Mandir Pran Pratishtha:अयोध्या मंदिर में स्थापित श्री राम की मूर्ति का रंग क्यों है ‘काला’?

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नई दिल्ली/अयोध्या: आज उत्तरप्रदेश के अयोध्या (Ayodhya)में रामलला की जबरदस्त धूम है। आज अयोध्या की सड़कों पर बिजनेस, फिल्म से लेकर खेल जगत की हस्तियां राम के रंग में रंगी नजर आ रही हैं। आज यहां रामलला के दर पर हर कोई पहुंच रहा है। आज अयोध्या में इस सदी के मेगा इवेंट का दौर है। आज अब से कुछ देर पहले अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर में श्री रामलला (Ram Mandir Pran Pratishtha) के नवीन विग्रह की सोमवार को प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न हुई और प्रधानमंत्री मोदी ने इससे संबंधित अनुष्ठान में भाग लिया।
अन्य मूर्तियों में लगेगा समय
इस बीच रामलला की मूर्ति की खासियत के बारे में जानकारी सामने आ गई है। यह प्रतिमा कुल 51 इंच ऊंची है, जो काले पत्थर से बनी है और बहुत ही आकर्षक ढंग से बनाई गई है। भगवान राम की यह मनमोहक मूर्ति मंदिर के गर्भगृह में रखी जाएगी। माता सीता और हनुमान के अलावा भगवान राम के भाइयों की मूर्तियां भव्य मंदिर की पहली मंजिल पर रखी जाएंगी। इसके निर्माण में अभी और आठ महीने और लगेंगे।
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सलाह पर तैयार डिजाइन
जानकारी दें कि भगवान श्रीराम की मूर्ति की लंबाई और ऊंचाई भारत के प्रतिष्ठित अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सलाह पर इस तरह से डिजाइन की गई है कि हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि राम नवमी को स्वयं भगवान सूर्य भी श्री राम का अभिषेक करेंगे। वहीं हर रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें सीधे उनके माथे पर पड़ेंगी, जिससे वह चमक उठेगी ।
कैसी है मूर्ति
भगवान श्री रामलला की जो मूर्ति बनी है, वह पांच वर्ष के बालक का स्वरूप है। यह मूर्ति 51 इंच की है और रामलला की मूर्ति का निर्माण काले पत्थर की गई है।रामलला की मूर्ति में भगवान के कई अवतारों को दर्शाया गया है। रामलला की प्रतिमा में बालसुलभ मुस्कान ने लोगों को बहुत ही ज्यादा आकर्षित किया गया है।
क्यों है रामलला की मूर्ति काली
दरअसल रामलला की मूर्ति का निर्माण शिला पत्थर से हुआ है। इस बहुमूल्य और काले पत्थर को कृष्ण शिला भी कहा जाता है। इस वजह से भी रामलला की मूर्ति का रंग श्यामल है। जिस पत्थर से रामलला की मूर्ति का निर्माण हुआ है, उसमे कई गुण हैं। वह पत्थर कई मायनों में बेहद खास है।
क्यों खास है रामलला की मूर्ति में उपयोग हुआ पत्थर
रामलला की मूर्ति के निर्माण में इस पत्थर का उपयोग करने के पीछे यह भी एक वजह है कि, जब रामलला का दूध से अभिषेक होगा तो दूध के गुण में पत्थर की वजह से कोई बदलाव नहीं होगा। उस दूध का उपभोग करने पर स्वास्थ्य पर कोई गलत असर नहीं पड़ेगा। साथ ही ये हजार से भी अधिक वर्षों तक यूं ही रह सकता है। यानी कि इसमें कोई बदलाव नहीं होगा।
वाल्‍मीकि रामायण में भी है इसका वर्णन
इसके अलावा अगर हम देखें तो वाल्‍मीकि रामायण में भी भगवान राम के स्वरूप को श्याम वर्ण में ही वर्णित किया गया है। इसलिए, यह भी एक जरुरी वजह है कि, रामलला की मूर्ति का रंग श्यामल है। साथ ही रामलला का श्यामल रूप में ही उनका पूजन होता है।

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